वंदे मातरम .....वंदे मातरम!!
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गुरुवार, 30 जून 2011
अन्ना की आयी है आंधी, गाँधी तेरे देश में
वंदे मातरम .....वंदे मातरम!!
बुधवार, 22 जून 2011
सोनिया गांधी का 84 हजार करोड़ काला धन स्विस बैंक में - भाग -२
एक स्विस पत्रिका की एक पुरानी रिपोर्ट (http://www.schweizer-illustrierte.ch/zeitschrift/500-millionen-der-schweiz-imeldas-faule-tricks#) को आधार माने तो यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के अरबों रुपये स्विस बैंक के खाते में जमा है. इस खाते को राजीव गांधी ने खुलवाया था. इस पत्रिका ने तीसरी दुनिया के चौदह ऐसे नेताओं के बारे में जानकारी दी थी, जिनके खाते स्विस बैंकों में थे और उनमें करोड़ों का काला धन जमा था.
काला धन देश में वापस लाने के मुद्दे पर बाबा रामदेव के आंदोलन से पहले सुप्रीम कोर्ट भी केंद्र सरकार की खिंचाई कर चुकी है. विदेशी बैंकों में काला धन जमा करने वाले भारतीयों के नाम सार्वजनिक किए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बीते 19 जनवरी को सरकार की जमकर खिंचाई की थी. सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक पूछ लिया था कि आखिर देश को लूटने वालों का नाम सरकार क्यों नहीं बताना चाहती है? इसके पहले 14 जनवरी को भी सुप्रीम कोर्ट ने इसी मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरा था. पर सरकार कोई तार्किक जवाब देने की बजाय टालमटोल वाला रवैया अपनाकर बच निकली.
मंगलवार, 21 जून 2011
सोनिया गांधी की यात्रा का खर्च 1850 करोड़ - भाग- १
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मंगलवार, 14 जून 2011
5 JUNE रामलीला मैदान :एक छिपा हुआ सत्य एक प्रत्यक्षदर्शी के शब्दों में
रविवार, 12 जून 2011
जन-आदोलन की जीत को बाबा की हार बताने पर तुली कांग्रेस!
जन-आदोलन की जीत को बाबा की हार बताने पर तुली कांग्रेस!
यह बाबा की हार नहीं, जन-आन्दोलन की जीत है. इसे बाबा की हार बताकर यह भ्रष्ट और तानाशाह कांग्रेस सरकार जन-आन्दोलन को कमजोर करने की कोशिश में है. ध्यान रहे, यह आन्दोलन न बाबा का है, न अन्ना का है, न किसी दल विशेष का. यह जनता का आन्दोलन है. अन्ना और बाबा इस आन्दोलन के एक नेता हैं. कुछ लोगों को यह गलतफहमी है कि यह किसी व्यक्ति विशेष का आन्दोलन है.
अन्ना और बाबा भी इस आन्दोलन को नेतृत्व देने तभी आये, जब भ्रष्टाचार के विरुद्ध आम लोगों का रोष उग्र से उग्रतर होने लगा और विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर कोई बड़ा आन्दोलन नहीं चलाया. अन्ना ने देशव्यापी आन्दोलन शुरू किया और उन्हें तुरंत-फुरंत एक जीत मिल गयी. ऐसी जीत बाबा को नहीं मिली. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वे विफल हो गए, जैसा कि कुछ दलाल चैनल और दलाल अखबार बताने के प्रयास में हैं.
बाबा के आन्दोलन का असर साफ़ देखा जा रहा है. कांग्रेस सरकार को मजबूरी में ही सही, काले धन के खिलाफ थोड़ी-बहुत कार्रवाई करनी पड़ रही है. बाबा की अधिकांश मांगें दिखावे के लिए ही सही इस सरकार ने मान ली है. और जब तक जन-आन्दोलन चलता रहेगा, सरकार को कार्रवाई करते रहना पड़ेगा. यह सच है कि बाबा को तुरंत वैसी सफलता नहीं मिल पायी, जैसा कि अन्ना को मिली. तो इसकी वजह यह है कि बाबा न तो कांग्रेस सरकार की तरह महाधूर्त हैं, और न ही वे अन्ना की तरह मंजे हुए पुराने आन्दोलनकारी हैं. इसके अलावा उनके सलाहकार भी उतने परिपक्व नहीं हैं. इसका अर्थ यह नहीं कि उनका मुद्दा पिट गया. बल्कि उनके मुद्दे को एक नयी जान मिली है. लोगों में इस भ्रष्ट और तानाशाह सरकार के खिलाफ गुस्से में इजाफा हुआ है. जनता भ्रष्टाचार के खिलाफ और अधिक जुझारू दिख रही है. इसे क्या हार कहते हैं?
किसी भी आन्दोलन में कभी पीछे भी हटना पड़ता है. कभी जान-बूझकर तो कभी मजबूरन. युद्ध की भी यही रणनीति है. इसका मतलब यह हुआ कि हम और अधिक मजबूती के साथ हमला करेंगे. बाबा भी ऐसा ही करेंगे. उनका भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन और ज्यादा शक्ति के साथ चलेगा. और अधिक सुचारू तथा परिपक्व बनेगा. आम लोगों को ऐसी ही उम्मीद है.
अन्ना और बाबा के नाम एक पंखुडी
अन्ना और बाबा के नाम
पखुड़ी पाठक की कविता
मुझे खुद-सा बनाने वाले तुझे दिल याद करे
मेरी तकदीर की तस्वीर सजाने वाले
तुझे दिल याद करे.
मेरे मनमीत मेरा साथ निभाने वाले
तुझे दिल याद करे.
लग्न की डोर खुद से ऐसी बाँधी है
कि कोई इसे तोड़ ना सके.
आयें कितनी भी आंधियां
बनके फानूस हिफाजत मेरी करने वाले
तुझे दिल याद करे.
मेरी तकदीर की तस्वीर सजाने वाले
तुझे दिल याद करे.
नहीं कोई तुमसा प्यारा मुझे ज़माने में
कोई बसता है मेरे दिल के आशियाने में
ऐ खुदा दोस्त,
मुझे खुद-सा बनाने वाले
तेरा आभार करने
तुझे दिल याद करे.
(यह कविता अन्ना और बाबा को समर्पित है. जिन्होंने न जाने कितनों को भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन में शामिल करके अपना जैसा बना लिया.)
बुधवार, 8 जून 2011
अन्ना हजारे और बाबा रामदेव सावधान!
शुक्रवार, 3 जून 2011
रिजवान हत्याकांड: शाहरुख की दगाबाजी
रिजवान हत्याकांड: शाहरुख की दगाबाजी
विशेष संवाददाता
कोलकाता : रिजवान हत्याकांड के मुख्य अभियुक्त टोडी परिवार की होजियरी कंपनी के साथ हुए करार को ‘स्थगित’ रखने के शाहरूख खान की घोषणा से कोलकाता निवासी एक हद तक प्रसन्न हैं। इसे भी ‘हत्यारों’ की हार और जनता की जीत के रूप में देखा जा रहा है। कोलकाता के लाखों लोग शाहरूख को शाबाशी दे रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि जनसमाचार के पिछले अंक में इस पर एक लंबी खबर प्रकाशित की गयी थी। जिसमें रिजवानुर रहमान हत्याकांड और इस षडयंत्र में अशोक-प्रदीप टोडियों के हाथ होने के बारे में विस्तार से बातया गया था। साथ ही, शाहरूख तथा नाइट राइडर्स की लोकप्रियता को भुनाने की टोडियों की शातिराना चाल का भी उल्लेख किया गया था। यहां यह भी बताना जरूरी है कि कुख्यात टोडियों ने मशहूर क्रिकेटर सौरव गांगुली के परिवार का दुरुपयोग करते हुए शाहरूख के साथ संपर्क साधा और अपने उत्पाद के प्रमोशन के लिए उसके साथ 35 करोड़ रु. का एक तीन वर्षीय विज्ञापन समझौता किया। सौरव गांगुली का बड़ा भाई स्नेहाशीष गांगुली का टोडियों के साथ बड़ा पुराना संबंध है। इसी स्नेहाशीष के जरिए टोडियों ने सौरव और शाहरूख को फांसने का काम किया। स्नेहाशीष बंगाल क्रिकेट बोर्ड कैब के साथ भी जुड़ा हुआ है। स्नेहाशीष ने ही कोलकाता के तत्कलीन कुख्यात पुलिस आयुक्त प्रसून मुखर्जी से टोडियों का परिचय करवाया था। यह परिचय बाद में रिजवान हत्याकांड के षडयंत्र में बड़ा काम आया। टोडियों को बचाने में प्रसून मुखर्जी ने पुलिस विभाग की बची-खुची प्रतिष्ठा को भी दांव पर लगा दी थी।
बहरहाल, शाहरूख और र्टोडियों के बीच हुए समझौते से असंख्य जागरूक और संवेदशील नागरिक नाराज हुए। रिजवान की मां किश्वरजहां के साथ अनेक लोगों ने धर्मतला में धरना भी दिया। टीपू सुल्तान मसजिद के इमाम ने शाहरूख की फिल्मों के बहिष्कार का फतवा भी जारी किया। पोस्टर फाड़े गए। शाहरूख और टोडियों के जरखरीद मीडिया ने इस खबर को दबाने का भरसक प्रयास किया। लेकिन मीडिया अभी भी इतना शक्तिशाली नहीं हुआ है कि जनता की बुलंद आवाज का गला घोंट सके।
जनता की नब्ज पहचान कर शाहरूख ने अपने प्रवक्ता के जरिए टोडियों के साथ हुए करार को स्थगित रखने की घोषणा की। यानि जब तक अशोक टोडी, प्रदीप टोडी और प्रियंका के मामा अनिल सरावगी बाइज्जत बरी नहीं हो जाते, तब तक करार स्थगित ही रहेगा।
जनता की आवाज पर शाहरूख का यह फैसला काबिले तारीफ है, मगर सवाल यह है कि इतने बड़े करार के पहले शाहरूख ने टोडियों के रिकॉर्ड की जांच क्यों नहीं करवायी। कोई भी करोड़ों रुपए की हड्डी डाल दे तो क्या शाहरूख (तथा अन्य तथाकथित स्टार) बिना सोचे-समझे उस पर टूट पड़ते हैं? अगर ऐसा नहीं है, तब फिर जानबूझ कर शाहरूख ने कुख्यात टोडियों के 35 करोड़ भला किस नीयत से स्वीकार किए? शाहरूख के साथ-साथ सौरव गांगुली की नीयत पर भी सवाल उठना लाजिमी है। सौरव को तो सब कुछ पता है, भले ही टोडियों से उसका निजी-राजनीतिक रिश्ता हो।
बहरहाल, शाहरूख की घोषणा के बावजूद विभिन्न चैनलों में टोडियों के विज्ञापनों में शाहरूख, सौरव, अगरकर आदि हंसते-मुस्कुराते दिखायी दे रहे हैं। शाहरूख ने अगर सचमुच नैतिकता और अपने विवेक की सुनकर उक्त फैसला किया है तो उसे चाहिए कि ऐसे तमाम विज्ञापनों को भी तुरंत रोक दिया जाए। (शाहरुख पर एक किश्त और भी)
गुरुवार, 2 जून 2011
रिजवान के ‘हत्यारों’ से शाहरूख को पैंतीस करोड़ : एक पुरानी रिपोर्ट
रिजवान के ‘हत्यारों’ से शाहरूख को पैंतीस करोड़
किरण पटनायक
कोलकाता : अजीब संयोग है। मुंबई में बैठे एक हिंदू कठमुल्ला नेता ने शाहरूख की नयी फिल्म के बहिष्कार का फरमान सुनाया तो दूसरी ओर भारत के पूरब में कोलकाता के टीपू सुल्तान मसजिद के शाही इमाम ने भी शाहरूख के फिल्म के विरोध का फतवा जारी किया। और, दोनों ही लगभग फ्लॉप रहे। मगर दोनों विरोध में बुनियादी फर्क है। मुंबई के डॉननुमा नेता ने अपनी तेजी से घटती खास को वापस जमाने या परखने के लिए एक बेहद गैरजरूरी मामले को हवा दी, जिससे आखिरकार कुल मिलाकर उसे व्यापक बदनामी ही हाथ लगी; बल्कि मुंह की खानी पड़ी। जबकि दूसरी ओर कोलकाता में हो रहा विरोध नैतिकता की कसौटी में सकारात्मक रहा।
दिलचस्प फर्क यह भी है कि मुंबई के कूपमंडूक नेता या दादा के विरोध को मीडिया में जरूरत से बहुत ज्यादा स्पेस मिला तो कोलकाता के इमाम और रिजवान परिवार की खिलाफत कहीं कोने में पड़ी सिसकती रही। जिस प्रभावशाली और अरबपति शाहरूख की वजह से मुंबई के संकीर्णतावादी व घोरस्वार्थी नेता के विरोध को मीडिया ने इतना ज्यादा तरजीह दी, उसी शाहरूख और उसके नए मित्र टोडी परिवार के कारण कोलकाता की खबर को लगभग दबा दिया गया।
कैप्शन : प्रियंका-रिजवान साथ-साथ
मुंबई के घटिया दर्जे के नेताओं के शाहरुख विरोध की कहानी के एक-एक शब्द से देश की जनता वाकिफ हो चुकी है, मगर कोलकाता के रिजवान परिवार और इससे जुड़े लोगों के शाहरुख विरोध के बारे में बहुत कम लोग जान पाये। सो यहां सिर्फ कोलकाता के विरोध को ही दर्ज किया जा रहा है।
11 फरवरी के दिन कोलकाता के धर्मतला के मेट्रो रेलवे स्टेशन के करीब शाहरुख खान के खिलाफ एक अनोखा धरना कार्यक्रम आयोजित हुआ। इस घरना में रिजवान परिवार सहित चंद बुद्धिजीवी और टीपू सुल्तान मसजिद के शाही इमाम भी शामिल हुए। मंच पर रिजवान
कैप्शन : रिजवानुर रहमान
की एक बड़ी तस्वीर लगी थी। और बगल में उसकी मां किश्वरजहां के साथ 2-4 दर्जन लोग हाथ में मोमबत्ती लिये बैठे थे। धरना मंच से ही शाही इमाम ने शाहरुख की नयी फिल्म का बहिष्कार करने का फतवा सुनाया। और फिल्म के पोस्टर भी फाड़े गए।
मां किश्वरजहां : इंसाफ की उम्मीद में
आखिर क्यों हो रहा है कोलकाता में शाहरुख का विरोध? दरअसल, पिछले दिनों शाहरुख ने कोलकाता के एक ऐसे कुख्यात होजियारी उद्योगपति अशोक टोडी, प्रदीप टोडी और टोडी परिवार के रिश्तेदार अनिल सरावगी के साथ करोड़ों रुपए का विज्ञापन समझौता किया, जिनका नाम रिजवानुर रहमान की हत्या से जुड़ा हुआ है। यह विज्ञापन प्रसारित भी होने लगा है। 2007 में इस हत्याकांड पर कोलकाता महीनों आंदोलित होता रहा था। और जनांदोलन और अदालत के दबाव पर आखिरकार मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य को सीबीआई जांच का आदेश देना पड़ा था। हालांकि सरकारी तथा टोडी परिवार के करोड़ों रुपए के दबाव पर सीबीआई ने बेशर्मी से लीपापोती करके इस हत्याकांड को ‘आत्महत्या’ करार दिया था। कोलकाता सहित बंगाल का जागरूक नागरिक सीबीआई के इस पूर्वनिर्धारित ‘निष्कर्ष’ से सहमत नहीं है। यहां तक कि कोलकाता के अधिकांश राजस्थानी-मारवाड़ी परिवार भी इसे हत्याकांड ही मानते हैं। भले ही वे रिजवान-प्रियंका के विवाह से सहमत न हों।
लोगों के इस विश्वास के पीछे वो सारे परिस्थितिजन्य प्रमाण रहे हैं, जिनसे यही पता चलता है कि रिजवान की हत्या की गयी। इसके अलावा टोडी परिवार और पुलिस के उच्चाधिकारियों की मिलीभगत भी हत्या की ओर ही इशारा करती है। अपने घर से कोई 15 किमी दूर रेलवे पटरी पर रिजवान की अक्षत लाश से भी लोगों का विश्वास पुष्ट हुआ। इन सबसे के अलावा और भी दर्जनों प्रमाणों से यही पता चलता है कि रिजवान की हत्या की गयी। पारिवारिक सदस्यों के अनुसार आत्महत्या का तो सवाल ही नहीं उठता है। रिजवान परिवार इस मामले को हत्या का मामला मान कर ही मुकदमा लड़ रहा है।
लोगों का मानना है कि सीबीआई ने उच्चस्तरीय दबाव पर और रिश्वत खाकर हत्या को आत्महत्या बना तो दिया, मगर जनरोष के भय से इस आत्महत्या के लिए चार-पांच बड़े पुलिस अधिकारियों और टोडियों को जिम्मेदार घोषित किया। फिर भी राज्य सरकार ने उन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं की और न ही टोडियों को गिरफ्तार किया गया। बाद में अदालत के आदेश पर चाेर पुलिस अधिकारी गिरफ्तार किए गऐ और उन्हें जमानत पर छोड़ भी दिया गया। अदालत के आदेश पर ही टोडियों की गिरफ्तारी हुई और उन्हें महीनों जेल में रहना पड़ा। बाद में, पता नहीं कानून के किस ‘चोर-दरवाजे’ से उन्हें जमानत दे दी गयी। जबकि आम नागरिकों को इस चोर दरवाजे की चाबी मिलती ही नहीं। बहरहाल, यह मामला अदालतों में जारी है। और लोगों को उम्मीद है कि देर-सबेर टोडी परिवार सहित पुलिस अधिकारियों को जेल की हवा खानी ही पड़ेगी। ठीक उसी तरह जैसे कि इसी कोलकाता के एक भुजिया सेठ को एक गरीब की हत्या की कोशिश में आजीवन सश्रम जेल की सजा सुनायी गयी।
टोडी परिवार की रिजवान से क्या दुश्मनी थी? अशोक टोडी की बेटी प्रियंका ने रिजवान से प्रेम-विवाह कर लिया था। प्रियंका जिस कंप्यूटर संस्थान में प्रशिक्षण ले रही थी, रिजवान वहां एक इंस्ट्रक्टर था। हमउम्र होने के कारण दोनों में मित्रता हुई और बात शादी तक जा पहुंची। प्रियंका के बारे में संस्थान में किसीको यह पता नहीं था कि वह किसी अरबपति परिवार की संतान है। रिजवान भी नहीं जानता था। काफी बाद में सबको इसका पता चला।
प्रियंका ने अपने परिवार के भय से चुपके से कोर्ट में शादी करने का प्रस्ताव रखा और दोनों की कानूनी शादी हो गयी। प्रियंका रिजवान के पार्क सर्कस स्थित तिलजला के घर में रहने चली गयी। न चाहते हुए भी मां सहित पूरे परिवार ने स्वीकार कर लिया। कोई उपाय भी न था। लेकिन टोडी परिवार के पास एक अन्य उपाय था। टोडियों ने जाल बिछाया। साम-दाम-दंड-भेद आजमाने के बाद पिता की बीमारी के बहाने अपने घर बुला कर नजरबंद कर लिया। और, बड़े रहस्यमय ढंग से रिजवान की हत्या करवा दी गयी। इस षडयंत्र में कोलकाता पुलिस के बड़े-बड़े अधिकारियों सहित तत्कालीन पुलिस आयुक्त प्रसून मुखर्जी भी शामिल रहे।
इस हत्या का विरोध न सिर्फ मुसलमानों ने किया; बल्कि कोलकाता-बंगाल के लाखों नागरिकों ने किया। हजारों बुद्धिजीवी-कलाकारों सहित कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और आम नागरिकों ने महीनों तक आंदोलन चलाया। उन्हें एक हद तक सफलता भी मिली। लेकिन रिजवान के हत्यारों को पूरी तरह से सजा नहीं मिल जाती, तब तक रिजवान परिवार सहित लाखों कोलकातावासी शांत नहीं रहनेवाले। 11 फरवरी को भले ही धरना मंच पर हजारों-लाखों की भीड़ न जुटी हो, मगर रिजवान की हत्या पर टोडी परिवार और पुलिस विभाग के खिलाफ आमलोगों का गुस्सा ठंडा नहीं हुआ है।
इसी बीच टोडी परिवार ने शातिराना चाल चलते हुए आईपीएल के कोलकाता नाइट राइडर्स के कारण बंगाल में सर्वाधिक लोकप्रिय बन चुके शाहरूख के साथकरोड़ों का विज्ञापन समझौता कर लिया। इससे पहले सनी देओल के साथ दो-चार करोड़ रूपए का समझौता किया गया था। लेकिन शाहरूक के साथ पैंतीस करोड़ का समझौता किया गया। शाहरूख में एक ‘खासियत’ यह भी है कि उसने मुसलमान परिवार में जन्म लिया है और वह बार-बार कहता भी है कि उसे भारतीय मुसलमान होने पर गर्व है। रिजवान हत्याकांड के आरोपी इस तरह एक तीर से कई शिकार करना चाहते रहे।
लेकिन शाहरूख को क्या हुआ है? क्या सारी बड़ीबड़ी बातें सिनेमाई डायलॉग भर हैं? क्या शाहरूख इतने लालची हैं कि हत्या के आरोपियों के सामने पैंतीस करोड़ रुपए के लिए समर्पण कर दें? टोडियों ने बड़े गर्व से घोेित किया कि तीन साल में शाहरुख पर पैंतीस करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे और इससे कंपनी को पांच सौ करोड़ रुपए से अधिक का मुनाफा होगा। टोडी परिवार इनरवेयर के धंधे में हैं।
यह सच है कि सचिन, अमिताभ, आमिर, शाहरुख, सौरव, अक्षय आदि से लेकर लगभग तमाम बड़े फिल्मी कालाकर और क्रिकेटर पैसे के लिए ‘जहर’ तक का विज्ञापन कर सकते हैं। शीतलपेय आखिर एक प्रकार का धीमा जहर ही तो है। इन तथाकथित महान कलाकार्रों और खिलाडि़यों को जूते चप्पल बेचते देख, प्रशंसकों के सिर शर्म से झुक जाते हैं तो क्या हुआ? इन लालचियों को किसी भी तरीके से बस पैसे कमाने हैं!! यहां-वहां के घटिया डॉनों के अड्डों पर जाकर इन्हें भड़वा डांस भी करते देखा गया है। लेकिन हद तो तब हो जाती है कि टोडी जैसे कुख्यात हत्यारों के हाथ शाहरुख जैसा बात-बहादूर भी बिक जाए।
मुंबई के डॉन का विरोध कमजोर पड़ता जा रहा है। तो कोलकाता के नैतिकतावादियों का शाहरुख विरोध बढ़ता जा रहा है। शाहरुख, लालच बुरी बला है!! (समाप्त)