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गुरुवार, 30 जून 2011

अन्ना की आयी है आंधी, गाँधी तेरे देश में

एक गीत जो अगर सही प्रकार से ध्वनित कर अन्ना के आंदोलन में सब स्थानों पर बजाया जायेगा

तो आन्दोलनकारियो में नयी जान फूंक सकता है ! यह गीत मेरे द्वारा रचित है तथा इसे “ आओ

बच्चों तुम्हे दिखाएँ झांकी हिन्दुस्तान की“ पर गाया जाना है ! यह गीत मेरी तरफ से राष्ट्र को

समर्पित है !


अन्ना कि आयी है आंधी, गाँधी तेरे देश में

सत्याग्रह का दमन हुआ है, सरकारी परिवेश में

वंदे मातरम वंदे मातरम !!


राजगुरु सुखदेव भगत ने, इन्क़लाब जब बोला था

सुन दहाड़ अंग्रेजों के शासन का तख्ता डोला था

भ्रष्टाचार के विरुद्ध, खड़े हैं आज युवा फिर भारत के

आर्थिक आज़ादी की खातिर, जौहर दिखे महारथ के

पछताओगे अहंकारियों, आ गए जो आवेश में

सत्याग्रह का दमन...........................................

वंदे मातरम .... वंदे मातरम!!


मंगल पाण्डेय आज खड़ा है, खून लिए फिर आँखों में

जज्बात लिए रानी झाँसी के, खड़े युवा हैं लाखों में

लोकपाल के लिए खड़ा अब, देश का बच्चा बच्चा है

जान गए अब देश के वासी, क्या झूठा क्या सच्चा है

नहीं चली है नहीं चलेगी, झूठों की इस देश में

सत्याग्रह का दमन....................................

वंदे मातरम .....वंदे मातरम!!


आज़ाद और बोस पूछते, ये आज़ादी कैसी है

जैसा हमने सोचा था, क्या देश की हालत वैसी है

चोर बनी सरकार जहाँ, फिर साज़ कहाँ से आयेंगे

जलियांवाला बाग का किस्सा, क्या फिर से दोहराएंगे

जनता भूखी मरती यारों, नेता जीते ऐश में

सत्याग्रह का दमन .............................................
.
वंदे मातरम वंदे मातरम !!

रचियता : अजय 'अज्ञात

बुधवार, 22 जून 2011

सोनिया गांधी का 84 हजार करोड़ काला धन स्विस बैंक में - भाग -२

सोनिया गांधी का 84 हजार करोड़ काला धन स्विस बैंक में

एक स्विस पत्रिका की एक पुरानी रिपोर्ट (
http://www.schweizer-illustrierte.ch/zeitschrift/500-millionen-der-schweiz-imeldas-faule-tricks#) को आधार माने तो यूपीए अध्‍यक्ष सोनिया गांधी के अरबों रुपये स्विस बैंक के खाते में जमा है. इस खाते को राजीव गांधी ने खुलवाया था. इस पत्रिका ने तीसरी दुनिया के चौदह ऐसे नेताओं के बारे में जानकारी दी थी, जिनके खाते स्विस बैंकों में थे और उनमें करोड़ों का काला धन जमा था.

रुसी खुफिया एजेंसी ने भी अपने दस्‍तावेजों में लिखा है कि रुस के साथ हुए सौदा में राजीव गांधी को अच्‍छी खासी रकम मिली थी, जिसे उन्‍होंने स्विस बैंके अपने खातों में जमा करा दिया था. पूर्व केन्‍द्रीय मंत्री एवं वरिष्‍ठ अधिवक्‍ता राम जेठमलानी भी सोनिया गांधी और उनके परिवार के पास अरबों का काला धन होने का आरोप लगा चुके हैं.

तो क्‍या केंद्र सरकार इसलिए भ्रष्‍टाचार और काले धन के मुद्दे को इसलिए गंभीरता से नहीं ले रही है कि सोनिया गांधी का काला धन स्विस बैंक जमा है? क्‍या केंद्र सरकार अन्‍ना हजार और रामदेव के साथ यह रवैया यूपीए अध्‍यक्ष के इशारे पर अपनाया गया था? क्‍या केन्‍द्र सरकार देश को लूटने वालों के नाम इसलिए ही सार्वजनिक नहीं करना चाहती है? क्‍या इसलिए काले धन को देश की सम्‍पत्ति घोषित करने की बजाय सरकार इस पर टैक्‍स वसूलकर इसे जमा करने वालों के पास ही रहने देने की योजना बना रही है? ऐसे कई सवाल हैं जो इन दिनों लोगों के जेहन में उठ रहे हैं.

काला धन देश में वापस लाने के मुद्दे पर बाबा रामदेव के आंदोलन से पहले सुप्रीम कोर्ट भी केंद्र सरकार की खिंचाई कर चुकी है. विदेशी बैंकों में काला धन जमा करने वाले भारतीयों के नाम सार्वजनिक किए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बीते 19 जनवरी को सरकार की जमकर खिंचाई की थी. सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक पूछ लिया था कि आखिर देश को लूटने वालों का नाम सरकार क्‍यों नहीं बताना चाहती है? इसके पहले 14 जनवरी को भी सुप्रीम कोर्ट ने इसी मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरा था. पर सरकार कोई तार्किक जवाब देने की बजाय टालमटोल वाला रवैया अपनाकर बच निकली.

केंद्र सरकार के इस ढुलमुल रवैये एवं काले धन संचयकों के नाम न बताने की अनिच्‍छा के पीछे गांधी परिवार का स्विस खाता हैं. इस खाता को राजीव गांधी ने खुलवाया था. इसमें इतनी रकम जमा है कि कई सालों तक मनरेगा का संचालन किया जा सकता है. यह बात कही थी एक स्विस पत्रिका ने. 'Schweizer Illustrierte' (http://www.schweizer-illustrierte.ch/ ) नामक इस पत्रिका ने अपने एक पुराने अंक में प्रकाशित एक खोजपरक रिपोर्ट में राजीव गांधी का नाम भी शामिल किया था. पत्रिका ने लिखा था कि तीसरी दुनिया के तेरह नेताओं के साथ राजीव गांधी का खाता भी स्विस बैंक में हैं. यह कोई मामूली पत्रिका नहीं है. बल्कि यह स्विट्जरलैंड की प्रतिष्ठित तथा मशहूर पत्रिका है. इस पत्रिका की 2 लाख 15 हजार से ज्‍यादा प्रतियां छपती हैं तथा इसके पाठकों की खंख्‍या 9 लाख 25 हजार के आसपास है. इसके पहले राजीव गांधी पर बोफोर्स में दलाली खाने का आरोप लग चुका है. डा. येवजेनिया एलबर्टस भी अपनी पुस्‍तक 'The state within a state - The KGB hold on Russia in past and future' में इस बात का खुलाया किया है कि राजीव गांधी और उनके परिवार को रुस के व्‍यवसायिक सौदों के बदले में लाभ मिले हैं. इस लाभ का एक बड़ा भाग स्विस बैंक में जमा किया गया है. रुस की जासूसी संस्‍था केजीबी के दस्‍तावेजों में भी राजीव गांधी के स्विस खाते होने की बात है.

जिस वक्‍त केजीबी दस्‍तावेजों के अनुसार राजीव गांधी की विधवा सोनिया गांधी अपने अवयस्‍क लड़के (जिस वक्‍त खुलासा किया गया था, उस वक्‍त राहुल गांधी वयस्‍क नहीं थे) के बदले संचालित करती हैं. इस खाते में 2.5 बिलियन स्विस फ्रैंक है, जो करीब 2.2 बिलियन डॉलर के बराबर है. यह 2.2 बिलियन डॉलर का खाता तब भी सक्रिय था, जब राहुल गांधी जून 1998 में वयस्‍क हो गए थे. अगर इस धन का मूल्‍यांकन भारतीय रुपयों में किया जाए तो उसकी कीमत लगभग 10, 000 करोड़ रुपये होती है. इस रिपोर्ट को आए काफी समय हो चुका है, फिर भी गांधी परिवार ने कभी इस रिपोर्ट का औपचारिक रूप से खंडन नहीं किया और ना ही इसके खिलाफ विधिक कार्रवाई की बात कही. आपको जानकारी दे दें कि स्विस बैंक अपने यहां जमा धनराशि का निवेश करता है, जिससे जमाकर्ता की राशि बढ़ती रहती है. अगर केजीबी के दस्‍तावेजों के आधार पर गांधी परिवार के पास मौजूद धन को अमेरिकी शेयर बाजार में लगाया गया होगा तो यह रकम लगभग 12,71 बिलियन डॉलर यानी लगभग 48, 365 करोड़ रुपये हो चुका होगा.

यदि इसे लंबी अवधि के शेयरों में निवेश किया गया होगा तो यह राशि लगभग 11. 21 बिलियन डॉलर होगी जो वर्तमान में लगभग 50, 355 करोड़ रुपये हो चुकी होगी. साल 2008 में आए वैश्विक आर्थिक मंदी के पहले यह राशि लगभग 18.66 बिलियन डॉलर यानी 83 हजार 700 करोड़ के आसपास हो चुकी होगी. वर्तमान स्थिति में गांधी परिवार के पास हर हाल में यह काला धन 45,000 करोड़ से लेकर 84, 000 करोड़ के बीच होगा. चर्चा है कि सकरार के पास ऐसे पचास लोगों की सूची आ चुकी है, जिनके पास टैक्‍स हैवेन देशों में बैंक एकाउंट हैं. पर सरकार ने अब तक मात्र 26 लोगों के नाम ही अदालत को सौंपे हैं. एक गैर सरकारी अनुमान के अनुसार 1948 से 2008 तक भारत अवैध वित्तीय प्रवाह (गैरकानूनी पूंजी पलायन) के चलते कुल 213 मिलियन डालर की राशि गंवा चुका है. भारत की वर्तमान कुल अवैध वित्तीय प्रवाह की वर्तमान कीमत कम से कम 462 बिलियन डालर के आसपास आंकी गई है, जो लगभग 20 लाख करोड़ के बराबर है, यानी भारत का इतना काला धन दूसरे देशों में जमा है.

यही कारण बताया जा रहा है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट से बराबर लताड़ खाने के बाद भी देश को लूटने वाले का नाम उजागर नहीं कर रही है. कहा जा रहा है कि इसी कारण बाबा रामदेव का आंदोलन एक रात में खतम करवा दिया गया तथा इसके पहले उन्‍हें इस मुद्दे पर मनाने के लिए चार-चार मंत्री हवाई अड्डे पर अगवानी करने गए. सरकार इसके चलते ही इस मामले की जांच जेपीसी से नहीं करवानी चा‍हती. इसके चलते ही भ्रष्‍टाचार के मामले में आरोपी थॉमस को सीवीसी यानी मुख्‍य सतर्कता आयुक्‍त बनाया गया, ताकि मामले को सामने आने से रोका जा सके..

(यह आलेख रजनी सक्सेना ने भेजा है.. इसे साझा किया जा सकता है.)

मंगलवार, 21 जून 2011

सोनिया गांधी की यात्रा का खर्च 1850 करोड़ - भाग- १

सोनिया गांधी की यात्रा खर्च का घोटाला

इतना खर्चा तो प्रधानमंत्री का भी नहीं है : पिछले तीन साल में सोनिया की सरकारी ऐश का सुबूत, सोनिया गाँधी के उपर सरकार ने पिछले तीन साल में जितनी रकम उनकी निजी विदेश यात्राओ पर की है उतना खर्च तो प्रधानमंत्री ने भी नहीं किया है ..एक सूचना के अनुसार पिछले तीन साल में सरकार ने करीब एक हज़ार आठ सौ अस्सी करोड रूपये सोनिया के विदेश दौरे के उपर खर्च किये है ..कैग ने इस पर आपति भी जताई तो दो अधिकारियो का तबादला कर दिया गया .
अब इस पर एक पत्रकार रमेश वर्मा ने सरकार से आर टी आई के तहत निम्न जानकारी मांगी है :

  1. सोनिया के उपर पिछले तीन साल में कुल कितने रूपये सरकार ने उनकी विदेश यात्रा के लिए खर्च किया है ?
  2. क्या ये यात्राएं सरकारी थी ?
  3. अगर सरकारी थी तो फिर उन यात्राओ से इस देश को क्या फायदा हुआ ?
  4. भारत के संविधान में सोनिया की हैसियत एक सांसद की है तो फिर उनको प्रोटोकॉल में एक राष्ट्राध्यक्ष का दर्जा कैसे मिला है ?
  5. सोनिया गाँधी आठ बार अपनी बीमार माँ को देखने न्यूयॉर्क के एक अस्पताल में गयी जो कि उनकी एक निजी यात्रा थी, फिर हर बार हिल्टन होटल में चार महगे सुइट भारतीय दूतावास ने क्यों सरकारी पैसे से बुक करवाए ?
  6. इस देश के प्रोटोकॉल के अनुसार सिर्फ प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ही विशेष विमान से अपने लाव-लश्कर के साथ विदेश यात्रा कर सकते है तो फिर एक सांसद को विशेष सरकारी विमान लेकर विदेश यात्रा की अनुमति क्यों दी गयी ?
  7. सोनिया गाँधी ने पिछले तीन साल में कितनी बार इटली और वेटिकेन की यात्राएं की है ?

मित्रों कई बार कोशिश करने के बावजूद भी जब सरकार की ओर से कोई जबाब नहीं मिला तो थक हारकर केंद्रीय सूचना आयोग में अपील करनी पड़ी.
केन्द्रीय सूचना आयोग प्रधानमंत्री और उनके कार्यालय के गलत रवैये से हैरान हो गया .और उसने प्रधानमंत्री के उपर बहुत ही सख्त टिप्पणी की

  1. केन्द्रीय सूचना आयोग ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विदेशी दौरों पर खर्च हुए पैसे को सार्वजनिक करने को कहा है। सीआईसी ने प्रधानमंत्री कार्यालय को इसके निर्देश भी दिए हैं। हिसार के एक आरटीआई कार्यकर्ता रमेश वर्मा ने प्रधानमंत्री कार्यालय से सोनिया गांधी के विदेशी दौरों, उन पर खर्च, विदेशी दौरों के मकसद और दौरों से हुए फायदे के बारे में जानकारी मांगी है
  2. 26 फरवरी 2010 को प्रधानमंत्री कार्यालय को वर्मा की याचिका मिली, जिसे पीएमओ ने 16 मार्च 2010 को विदेश मंत्रालय को भेज दिया। 26 मार्च 2010 को विदेश मंत्रालय ने याचिका को संसदीय कार्य मंत्रालय के पास भेज दिया। प्रधानमंत्री कार्यालय के इस ढ़ीले रवैए पर नाराजगी जताते हुए मुख्य सूचना आयुक्त सत्येन्द्र मिश्रा ने निर्देश दिया कि भविष्य में याचिका की संबंधित मंत्रालय ही भेजा जाए। वर्मा ने पीएमओ के सीपीआईओ को याचिका दी थी। सीपीआईओ को यह याचिका संबंधित मंत्रालय को भेजनी चाहिए थी।

आखिर सोनिया की विदेश यात्राओ में वो कौन सा राज छुपा है जो इस देश के " संत " प्रधानमंत्री इस देश की जनता को बताना नहीं चाहते ? !

(यह बहुत बड़ा आलेख मुझे रजनी सक्सेना ने भेजा है. इसे मेरे मित्र साझा कर सकते हैं.)

मंगलवार, 14 जून 2011

5 JUNE रामलीला मैदान :एक छिपा हुआ सत्य एक प्रत्यक्षदर्शी के शब्दों में


दिल्ली के रामलीला मैदान में क्या हुआ था ४ और ५ जून की रात को ये आप में से अधिकांश लोग जानते हैं परन्तु शायद आप में से बहुतों ने वही सुना होगा जो आप को मीडिया ने बताया और मीडिया ने आप को वही बताया जो सरकार चाहती थी यद्यपि वहां पर उपस्थित बहुत से लोगों ने भी इस बारे में लेख लिखे थे परन्तु मुझे लग रहा है कि वो शायद मीडिया के शोर से कम है, इसलिए मुझे भी आप सभी को बताना चाहिए जो मैंने देखा था वहां पर ताकि आप लोगो को पता चल सके की वास्तव में वहां पर क्या हुआ था और की मिडिया ने इतना अधिक तोड़-मरोड़ दिखाया कि वास्तविकता से बहुत दूर हो गयी घटना. अलग-अलग बाते और बेसिर-पैर की बातो को चटकीला रुख दिया जा रहा था. वह की कष्टप्रद स्थिति की तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा था | मैं रामलीला मैदान में ४ जून शनीवार की रात को 7 बजे से कुछ देर बाद पहुंचा था. मैं वहां पर बाबा के समर्थन में बैठने के विचार से गया था. मैं अनशन पर नहीं बैठ रहा था |
जब मैं पहुंचा तब बाबा की प्रेसवार्ता चल रही थी और सरकार के द्वारा फैलाये गए इस भ्रम का निवारण हो चुका था कि आन्दोलन समाप्त हो चुका है | बाबा पत्रकारों के सभी सवालों का पूरी प्रमाणिकता के साथ उत्तर दे रहे थे. कई प्रश्न थे परन्तु एक महिला पत्रकार का प्रश्न कुछ अधिक याद आ रहा है उसने पूछा था "बाबा जी , आप ने इतने लोगों के एकत्रित कर लिया और आप को अपनी गिरफ्तारी की आशंका भी है तो अगर कोई अप्रिय घटना होती है तो इसके लिए कौन जिम्मेदार होगा?" बाबा ने उत्तर दिया "हमारा कोई सत्याग्राही कोई हिंसा नहीं करेगा " |
इस पत्रकार वार्ता के बाद दो मुस्लिम व्यक्तियों ने सभा को संबोधित किया और इसके बाद बाबा रामदेव जी ने सभा को संबोधित किया और हमें निर्दश दिया कि सभी लोग पानी पीकर आयें और फिर विश्राम करें. सत्र की समाप्ति की घोषणा कर दी गयी. इसके कुछ समय बाद मंच की लाईट भी बंद हो गयी |हम लोग बाहर घूमने चले गए क्यूंकि मैं अनशन पर नहीं था, इसीलिए मैं चाय और नाश्ता करके वापस आ गया और फिर मैंने सोने के लिए मुख्य पंडाल के बाहर छोटे पंडाल में लेट गया. वहां पर बैठे कुछ और सत्यागाहियों से हमारी बात होती रही थी. रात को ११ बजे तक तभी एक स्वयंसेवक ने आकर हमसे सोने के लिए कहा क्योंकी हमारे जगने से दुसरे लोगों को असुविधा हो सकती थी और हम सभी रात को ११ बजे सो गए |
रात को अचानक मेरी नींद खुली तो मुझे मंच पर कुछ शोर सुनायी दिया और मंच पर कुछ प्रकाश दिखाई दिया मैंने अपने cell में तुरंत समय देखा तो समय १:02 था | मुझे किसी अनिष्ट की आशंका हो गयी थी क्योंकी बाबा ने पहले ही कह दिया था कि उनकी गिरफ्तारी हो सकती है. मैंने तुरन अपने पास सो रहे लगभग 4 या 5 लोगों को जगाया और फिर मैंने अपने जूते पहने और अपना सामान अपने बैग में रखकर मैं दौड़ कर मंच की तरफ जाने लगा (मैं वहां उपस्थित लोगों में से लगभग सबसे पीछे था) | मैं कुछ 200 मीटर ही गया था की माइक पर बाबा का स्वर सुनायी दिया "मैं यहीं हूँ .मैं आप सब के बीच ही हूँ और अंतिम समय तक आप के साथ ही रहूँगा आप सभी अपने स्थान पर बैठे रहें |"
ये शब्द सुन कर मैं वहीं पर कुछ लोगों के बीच बैठ गया अभी तक सभी लाईट जल चुकी थीं और शोर बढ़ता जा रहा था हर किसीको कुछ गलत होने की आशंका हो रही थी , बाबा ने पुनः बोलना शुरू किया "आप सभी लोग मुझसे प्यार करते हो ना .......तो सब लोग शांत हो जाओ और जो जहाँ बैठा है वहीं बैठा रहे. मैं आप लोगों के बीच ही हूँ मैं कहीं नहीं गया हूँ .......सब लोग अपनी जगह पर ही बैठे रहेंगे ......अब हम लोग ॐ शब्द का उच्चारण करेंगे " इसके बार समस्त उपस्थित जन समुदाय ने ३ बार ॐ शब्द का उच्चारण किया (इस समय तक मैं अपने मित्रों को SMS भेज कर घटना के बारे में बताने लगा था ताकि लोगों को पता चल जाय ).
इससे कुछ शांति हो गयी बाबा ने आगे कहा "आप सब लोग बिल्कुल शांत हो जाइये अब हम लोग गायत्री मन्त्र बोलेंगे " इसके बाद बाबा के साथ वहां उपस्थित समस्त जनसमुदाय ने एक बार गायत्री मन्त्र और एक बार महामृत्युंजय मन्त्र का उच्चारण किया | इसके बाद पूरे पंडाल में पूर्ण शांति छा गयी थी. १ लाख लोग पूर्ण अनुशासित थे और पंडाल में पूर्ण निः शब्दता (Pin drop silent ) ,इसके बाद बाबा ने आगे बोलना शुरू किया "पुलिस मुझे गिरफ्तार करने के लिए आयी है परतु अगर आप लोग मुझे प्यार करते हो तो आप में से कोई भी पुलिस के साथ धक्का मुक्की नहीं करेगा कोई चाहें जो भी स्थिति आ जाय आप लोग पुलिस पर प्रहार नहीं करेंगे पुलिसे को मुझे शांतिपूर्वक ले जाने देंगे सब लोग शांत हो जाय |"

हम लोगों को आशा थी कि शायद इसके बाद पुलिसे बाबा को गिरफ्तार करके ले जायेगी. इसके बाद बाबा ने फिर कहा कि "मुझे एक तार वाला माइक चाहिए क्योंकी इसकी बैटरी ख़तम हो सकती है और एक व्यक्ति चाहिए जो माइक को पकड़ सके " परन्तु शायद पुलिस तो कुछ और ही सोच कर आयी थी. वो बाबा की तरफ बढ़ने लगी. भक्तों के साथ मार-पीट करते हुए. बाबा ने फिर कहा "मेरा दो स्तर का सुरक्षा चक्र है , अन्दर वाले चक्र में बहने हैं और बाहर वाले चक्र में युवा हैं. पुलिसे इस चक्र को ना तोड़े. आपलोग मुझे गिरफ्तार करने आये हैं, मैं गिरफ्तारी देने के लिए तैयार हूँ "लेकिन पुलिस इस समय तक महिलाओं और लड़कियों पर लाठियां चलाने लगी थी. बाबा ने फिर कहा "आप लोग बहनों के साथ धक्का मुक्की मत करिए " . लेकिन पुलिसे ने बाबा की कोई बात नहीं सुनी. बाबा ने फिर कहा "आप लोग एक पुलिस कर्मी होने से पहले एक भारतीय है. इस प्रकार से निहत्थों पर प्रहार मत करिए .इन लोगों ने आप का क्या बिगाड़ा है अगर यहाँ पर पुलिसे का कोई बड़ा अधिकारी है तो वो हमसे बात करे ......अगर पुलिस में कोई बड़ा अधिकारी है तो वो आकर हमसे बात करे हम गिरफ्तारी देने के लिए तैयार हैं. "
लेकिन बाबा की इस अपील के जवाब में भी पुलिस की तरफ से लाठियां ही चलीं (अधिकारिक र्रोप से पुलिस का कहना है की वो बाबा वो सुरक्षा संबंधी खतरे के बारे में बताने के लिए गए थे ) इसके बाद बाबा ने भक्तों से कहा "आप सभी लोग पुलिस को यहाँ तक मत आने दीजिये घेरा बना लीजिये " बाबा के इस आदेश को सुन कर सभी लोग जो अपने स्थान पर बैठे हुए थे, वो दौड़ कर मंच की तरफ जाने लगे बाबा की रक्षा के लिए. हमें समझ में आ गया था, अब पुलिस के साथ संघर्ष हो सकता है | हम कुछ लोग पंडाल के बने गलियारे से होकर मंच के तरफ जा रहे थे. थोड़ी दूर चलने के ही बाद कुछ पुलिसकर्मी उस रस्ते को रोककर खड़े हुए थे , वो पुलिसकर्मी लाठियां लिए हुए थे और हेलमेट और बाकी सभी सुरक्षा उपकरणों से युक्त थे. मतलब वो सीधे-सीधे संघर्ष करने के प्रयास में थे और उन्होंने हम लोगों पर लाठियां चलानी शुरू कर दीं | हम लोग बिना कोई प्रतिरोध किये उस गलियारे को छोड़ कर बाईं तरफ से मंच की तरफ बढे और दौड़ कर मंच के पास पहुच गए |
उस समय तक मंच के पास बहुत भीड़ इकट्ठी हो चुकी थी और बाबा भी मंच पर बाईं तरफ ही थे, तभी कुछ लोगों ने पीछे की तरफ ध्यान दिलाया तो पंडाल की बाईं तरफ से पुलिसकर्मी मंच की तरफ पहुँचने का प्रयास कर रहे थे| हम लोगों ने उन पुलिसकर्मियों को आगे नहीं बढ़ने दिया और मंच की तरफ जाने के रस्ते को घेर लिया. इससे वो पुलिसकर्मी वापस लौट गए. उनके वापस जाने के बाद हम लोग फिर से मंच के ठीक नीचे बाईं तरफ पहुँच गए थे और आगे क्या होगा, इसकी प्रतीक्षा कर रहे थे | तभी मंच पर चढ़े कुछ लोगों ने हमसे कहा की मंच के पीछे जाकर घेरा बनाओ, क्योंकी पुलिस पीछे से मंच पर चढ़ने की कोशिश कर रही है | हम लगभग 30 लोग मंच के पीछे चले गए और वहां पर जो पुलिस्कर्मे खड़े थे और मंच की तरफ जा रहे थे, उनके सामने घेरा बना कर खड़े हो गए | हम लोग वन्देमातरम और भारत माता की जय के नारे लगा रहे थे |

हमारे घेरे के कारण तो वो पुलिसकर्मी कुछ पीछे हट गए और वहां लगे हुए एक लोहे के द्वार के ठीक बाहर खड़े हो गए. इस समय मैं सबसे आगे खड़े हुए 4 या 5 लोगों में से था. तभी उन पुलिसकर्मियों के अधिकारी ने उनको आदेश दिया हमें मारने का और उन पुलिस्स्कर्मियों ने हम पर लाठियां बरसानी शुरू कर दी | यह एक विशुद्ध रूप से भगदड़ मचाने का प्रयास था, क्योंकी उस स्थान पर (मंच के पीछे) ना तो पर्याप्त प्रकाश था और ना ही जमीन ही समतल थी. इसलिए भगदड़ में गिरने की संभावना और चोटिल होने की संभावना बहुत अधिक थी (और शायद यही पुलिस का लक्ष्य था )| इस लाठीचार्ज के कारण हम लोगों को वहां से पीछे हटना पड़ा, परन्तु बिना किसी भगदड़ के और हमलोग फिर से मंच के पास आ गए बायीं तरफ, परन्तु इस समय तक बाबा हमें दिखाई नहीं दे रहे थे और हम मंच के पास ही खड़े थे और पूरी भीड़ मंच की तरफ ही बढ़ रही थी |
इसके लगभग १० मिनट के बाद मंच पर खड़े पुलिसकर्मियों के द्वारा अश्रु गैस का पहला गोला छोड़ा गया (लगभग उसी स्थान पर जहाँ पर बाबा अपने समर्थकों के बीच में गुम हो गए थे ). ये पुलिस का एक और भगदड़ मचाने का ही प्रयास था | आसू गैस का गोला आते ही मैंने अपना रुमाल गीला करके अपने मुह में बाँध लिया, क्योंकी मुझे अश्रु गैस के प्रभाव का पता था और इसके बाद जो लोग अभी तक बैठे हुए थे मैंने उनको उठाना प्रारंभ किया और बताया कि आंसू गैस के कारण कुछ भी दिखना बंद हो जाएगा या भगदड़ भी हो सकती है और भी बहुत से लोग ऐसा ही कर रहे थे | इस सबमें मैं सबसे आगे के कुछ लोगों में हो गया था और मुझे सब मुछ साफ साफ दिख रहा था | लोग इस सब के बाद अपने स्थान पर खड़े तो हो गए थे परन्तु पीछे हटने के लिए कोई तैयार नहीं था | इस सब के बीच में अफरातफरी और धुएं के कारण बाबा लोगों को दिखाई देना बंद हो गए थे |
वहां पर उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति का यही मत था कि अगर बाबा को पुलिस ने गिरफ्तार भी कर लिया है तो हम अनशन और सत्याग्रह जारी रखेंगे | इसके बाद अश्रु गैस के गोले भारी मात्र में चलने लगे थे मंच के ऊपर से और अगर आंसू गैस के गोलों की संख्या के बारे में कुछ मानक होते हैं तो उसका निश्चित रूप से उल्लंघन हुआ होगा | मुझे केवल धुएं के कारण 100 मीटर दूरी की चीज भी नहीं दिखाई दे रही थी (पुलिस के अनुसार १८ गोले चलाये गए थे |) |पुलिसकर्मी अब पूरी शक्ति से लाठियां भी चलाने लगे थे और वो हर किसीको मार रहे थे. हम लोग तो लाठियां खाने के लिए थे , परन्तु शायद महिलाओं से तो महिला पुलिस निपटती है , लेकिन वहां पुरुष पुलिसकर्मी ही महिलाओं पर भी लाठियां चला रहे थे (आपने अगर महिला पुलिस्कर्मियों की कोई फोटो देखि है तो वो शायद वहां पर केवल फोटो के लिए ही बुलाई गयी होंगी, कारवाई में वो नहीं थीं ). यही नहीं वृद्धों और 8 वर्ष के बच्चों पर भी लाठियां चलायी जा रही थीं |
इस सत्याग्रह में लोग सारे देश से आये थे और लम्बे समय तक रुकने के लिए आये थे | इस स्थिति में उनके पास बहुत सामान था और उसे उठाकर भागा नहीं जा सकता था, लेकिन पुलिस कर्मी बाहर निकल रहे लोगों को भी मार रहे थे | सत्याग्रही भूखे थे नींद में थे, जबकी पुलिसकर्मी पूरी तरह से तैयार थे | सत्याग्रहियों के पास भरी सामान था जिसको लेकर तेज गति से चलना भी संभव नहीं था और पुलिसकर्मियों के पास लाठी , हेलमेट और अन्य सुरक्षा उपकरण थे | सत्याग्रही 8 वर्ष के बच्चे भी थे 70 वर्ष के बुजुर्ग भी और पुलिसकर्मी सभी युवा. लेकिन फिर भी पुलिसकर्मी हिंसक थे और सत्याग्रही शांत. पुलिसकर्मी हुडदंगी और दंगाई थे जबकी सत्याग्रही शांत और अनुशासित थे | सत्याग्रहियों ने न तो कोई भगदड़ होने दी और न ही पुलिसकर्मियों पर प्रहार किया क्योंकी बाबा ने हमें ऐसा करने से मना किया हुआ था (अगर आपने कोई समाचार सुना है तो आप पत्रकारों की कल्पनाशीलता की प्रशंसा कर सकते हैं |)
मैंदान से निकलने के लिए केवल एक छोटा-सा दरवाजा था, जिससे एक बार में केवल एक या दो लोग ही निकल सकते थे (जो दो आपातकालीन दरवाजे बनाये गए थे, उनका भी प्रयोग नहीं किया गया. लोगों को निकलने के लिए इससे बड़ा आपातकाल क्या हो सकता था ) ??? मैं बाहर निकलने वाले अंतिम शायद 100 लोगों में से था | जब हम लोग हटते हुए दरवाजे तक आ गए थे तो वहां भीड़ बहुत ज्यादा हो गयी थी क्योंकी निकलने के लिए एक छोटा ही दरवाजा था और पुलिस को ये दिख भी रहा था. परन्तु पुलिस तब भी अंत तक लाठियां चलाती रही ताकि किसी तरह से भगदड़ मच जाय लेकिन सभी सत्याग्रही अत्यंत अनुशासित थे, इसलिए वहां ना तो कोई भगदड़ हुई और ना ही कोई हादसा |
तभी किसी ने ऊँचे स्थान पर चढ़ कर कहा कि "अब हम लोगों को जंतर मंतर जाना धरना देने के लिए. संपूर्णानंद जी आ रहे हैं उच्चाधिकारियों की तरफ से आदेश आया है "| ये सुन कर मैं भी रामलीला मैदान से बाहर आ गया | इस सब में केवल 2 घंटे का समय ही दिया गया, जिसमे राम लीला मैदान खाली करना था और मैदान में १ लाख लोग थे | जलियावाला बाग़ कांड इतिहास से निकल कर वास्तविकता में आ गया था. सामने फिर यह सिर्फ बाबा की वाणी का ही प्रभाव था कि लोगो ने सयम रखा नहीं तो पुलिस बार-बार यह प्रयास कर रही थी कि सत्याग्रही भड़क कर प्रतिरोध करे और 8000 (जी हाँ 5000 केवल सरकारी आंकड़ा है) पुलिस को गोलियां चलाने का बहाना मिले | वहा से कैमरे चोरी कर लिए गए और एडिट करके दिखाया जा रहा है | (इसके बाद भी बताने के लिए बहुत कुछ है और आप लोग सुनना चाहेंगे तो बता दूंगा देहरादून से वापस आ कर. अब मैं देहरादून जा रहा हूँ|)

(यह आंखों देखा हाल फेसबुक में संगीता जैन के पृष्ठ से साभार लिया गया है.)

रविवार, 12 जून 2011

जन-आदोलन की जीत को बाबा की हार बताने पर तुली कांग्रेस!

जन-आदोलन की जीत को बाबा की हार बताने पर तुली कांग्रेस!

यह बाबा की हार नहीं, जन-आन्दोलन की जीत है. इसे बाबा की हार बताकर यह भ्रष्ट और तानाशाह कांग्रेस सरकार जन-आन्दोलन को कमजोर करने की कोशिश में है. ध्यान रहे, यह आन्दोलन न बाबा का है, न अन्ना का है, न किसी दल विशेष का. यह जनता का आन्दोलन है. अन्ना और बाबा इस आन्दोलन के एक नेता हैं. कुछ लोगों को यह गलतफहमी है कि यह किसी व्यक्ति विशेष का आन्दोलन है.


अन्ना और बाबा भी इस आन्दोलन को नेतृत्व देने तभी आये, जब भ्रष्टाचार के विरुद्ध आम लोगों का रोष उग्र से उग्रतर होने लगा और विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर कोई बड़ा आन्दोलन नहीं चलाया. अन्ना ने देशव्यापी आन्दोलन शुरू किया और उन्हें तुरंत-फुरंत एक जीत मिल गयी. ऐसी जीत बाबा को नहीं मिली. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वे विफल हो गए, जैसा कि कुछ दलाल चैनल और दलाल अखबार बताने के प्रयास में हैं.


बाबा के आन्दोलन का असर साफ़ देखा जा रहा है. कांग्रेस सरकार को मजबूरी में ही सही, काले धन के खिलाफ थोड़ी-बहुत कार्रवाई करनी पड़ रही है. बाबा की अधिकांश मांगें दिखावे के लिए ही सही इस सरकार ने मान ली है. और जब तक जन-आन्दोलन चलता रहेगा, सरकार को कार्रवाई करते रहना पड़ेगा. यह सच है कि बाबा को तुरंत वैसी सफलता नहीं मिल पायी, जैसा कि अन्ना को मिली. तो इसकी वजह यह है कि बाबा न तो कांग्रेस सरकार की तरह महाधूर्त हैं, और न ही वे अन्ना की तरह मंजे हुए पुराने आन्दोलनकारी हैं. इसके अलावा उनके सलाहकार भी उतने परिपक्व नहीं हैं. इसका अर्थ यह नहीं कि उनका मुद्दा पिट गया. बल्कि उनके मुद्दे को एक नयी जान मिली है. लोगों में इस भ्रष्ट और तानाशाह सरकार के खिलाफ गुस्से में इजाफा हुआ है. जनता भ्रष्टाचार के खिलाफ और अधिक जुझारू दिख रही है. इसे क्या हार कहते हैं?


किसी भी आन्दोलन में कभी पीछे भी हटना पड़ता है. कभी जान-बूझकर तो कभी मजबूरन. युद्ध की भी यही रणनीति है. इसका मतलब यह हुआ कि हम और अधिक मजबूती के साथ हमला करेंगे. बाबा भी ऐसा ही करेंगे. उनका भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन और ज्यादा शक्ति के साथ चलेगा. और अधिक सुचारू तथा परिपक्व बनेगा. आम लोगों को ऐसी ही उम्मीद है.


अन्ना और बाबा के नाम एक पंखुडी

अन्ना और बाबा के नाम

पखुड़ी पाठक की कविता

मुझे खुद-सा बनाने वाले तुझे दिल याद करे


मेरी तकदीर की तस्वीर सजाने वाले

तुझे दिल याद करे.

मेरे मनमीत मेरा साथ निभाने वाले

तुझे दिल याद करे.

लग्न की डोर खुद से ऐसी बाँधी है

कि कोई इसे तोड़ ना सके.

आयें कितनी भी आंधियां

बनके फानूस हिफाजत मेरी करने वाले

तुझे दिल याद करे.

मेरी तकदीर की तस्वीर सजाने वाले

तुझे दिल याद करे.

नहीं कोई तुमसा प्यारा मुझे ज़माने में

कोई बसता है मेरे दिल के आशियाने में

ऐ खुदा दोस्त,

मुझे खुद-सा बनाने वाले

तेरा आभार करने

तुझे दिल याद करे.

(यह कविता अन्ना और बाबा को समर्पित है. जिन्होंने न जाने कितनों को भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन में शामिल करके अपना जैसा बना लिया.)

बुधवार, 8 जून 2011

अन्ना हजारे और बाबा रामदेव सावधान!

अन्ना हजारे और बाबा रामदेव के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन को चंद भ्रष्टाचारियों को छोड़ लगभग सारे भारतीयों का समर्थन है. जब देश की सभी राजनीतिक दल इस मामले में विफल और निकम्मे साबित हो गए, तब अन्ना और बाबा ने इस बहुत ही महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दे को अपने हाथों में लिया और देश भर में नव-जागरण पैदा किया. इनकी वजह से आज यह आन्दोलन एक ऐसे मुकाम पर जा पहुंचा है कि मामला आर-पार का बन गया है.

ऐसे वक्त अन्ना और बाबा को मिलकर इस आन्दोलन को आगे बढ़ाना चाहिए. और एक हद तक ऐसा हो भी रहा है. लेकिन कुछ राजनीतिक दल इस राष्ट्रीय आन्दोलन की लोकप्रियता का घर बैठे लाभ उठाने की फिराक में हैं. अन्ना और बाबा को ऐसे दलों से सावधान रहने की ज़रूरत है. इन दोनों का आन्दोलन शुद्ध रूप से गैर-राजनीतिक है. इसे राजनीतिक रंग देने से बचना जरुरी है. और ऐसे दलों को भी चाहिए कि जब जनता का एक स्वतःस्फूर्त जन-आन्दोलन चल रहा है, तो वे वहां जबरन या चतुराई से अपनी नाक न घुसेड़े.

वे अपने बल पर अपना अलग आन्दोलन चला सकते हैं. अगर ईमानदारी से वो आन्दोलन चलाये गए तो निश्चित तौर पर उन्हें भी जनता का भरपूर समर्थन मिलेगा. किसी दूसरे की मेहनत की कमाई पर माल-मलाई खाने का लालच छोड़ दें, इससे आन्दोलन को नुकसान पहुंचेगा और भ्रष्ट सरकार मजे करेगी. मैं खासकर भाजपा से कहना चाहता हूं कि उसने आज तक महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के मुद्दों पर कोई बड़ा देशव्यापी आन्दोलन खड़ा नहीं किया, जबकि उसके पास अवसर थे. अब वह अन्ना या बाबा के पीछे लगकर मुफ्त की मलाई खाने की मंशा से बाज आ जाय.

अभी भी समय है, वह अपने बल पर या संयुक्त विपक्ष (जितना संभव हो) का एक अलग आन्दोलन चलाये और अन्ना तथा बाबा के आंदोलनों को जरा दूर रहकर समर्थन भी देती रहे. विपक्ष के अपने स्वतंत्र भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन से उसकी गिरी हुई साख फिर से ऊपर आ सकती है. फिलहाल, अन्ना-बाबा कोई चुनाव नहीं लड़ने वाले. सो, सकारात्मक आन्दोलन का चुनावी लाभ आन्दोलनकारी विपक्ष को ही मिलेगा.

भाजपा सहित तमाम तरह का विपक्ष इस बात को याद रखे कि अगर अन्ना और बाबा का यह आन्दोलन विपक्ष की वजह से कमजोर हुआ या उसमें फूट पड़ी तो जनता भाजपा सहित अन्य सकारात्मक विपक्ष को माफ नहीं करेगी. अन्ना-बाबा भी इनसे ज़रा दूरी बनाए रखें, इसीमे आन्दोलन का भला है. (मित्रों, कृपया इस लेख को आपलोग अपने वाल पर लगाएं और अपने मित्रों को भी भेज दें.

शुक्रवार, 3 जून 2011

रिजवान हत्याकांड: शाहरुख की दगाबाजी

रिजवान हत्याकांड: शाहरुख की दगाबाजी

विशेष संवाददाता

कोलकाता : रिजवान हत्याकांड के मुख्य अभियुक्त टोडी परिवार की होजियरी कंपनी के साथ हुए करार को स्थगित रखने के शाहरूख खान की घोषणा से कोलकाता निवासी एक हद तक प्रसन्न हैं। इसे भी हत्यारों की हार और जनता की जीत के रूप में देखा जा रहा है। कोलकाता के लाखों लोग शाहरूख को शाबाशी दे रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि जनसमाचार के पिछले अंक में इस पर एक लंबी खबर प्रकाशित की गयी थी। जिसमें रिजवानुर रहमान हत्याकांड और इस षडयंत्र में अशोक-प्रदीप टोडियों के हाथ होने के बारे में विस्तार से बातया गया था। साथ ही, शाहरूख तथा नाइट राइडर्स की लोकप्रियता को भुनाने की टोडियों की शातिराना चाल का भी उल्लेख किया गया था। यहां यह भी बताना जरूरी है कि कुख्यात टोडियों ने मशहूर क्रिकेटर सौरव गांगुली के परिवार का दुरुपयोग करते हुए शाहरूख के साथ संपर्क साधा और अपने उत्पाद के प्रमोशन के लिए उसके साथ 35 करोड़ रु. का एक तीन वर्षीय विज्ञापन समझौता किया। सौरव गांगुली का बड़ा भाई स्नेहाशीष गांगुली का टोडियों के साथ बड़ा पुराना संबंध है। इसी स्नेहाशीष के जरिए टोडियों ने सौरव और शाहरूख को फांसने का काम किया। स्नेहाशीष बंगाल क्रिकेट बोर्ड कैब के साथ भी जुड़ा हुआ है। स्नेहाशीष ने ही कोलकाता के तत्कलीन कुख्यात पुलिस आयुक्त प्रसून मुखर्जी से टोडियों का परिचय करवाया था। यह परिचय बाद में रिजवान हत्याकांड के षडयंत्र में बड़ा काम आया। टोडियों को बचाने में प्रसून मुखर्जी ने पुलिस विभाग की बची-खुची प्रतिष्ठा को भी दांव पर लगा दी थी।

बहरहाल, शाहरूख और र्टोडियों के बीच हुए समझौते से असंख्य जागरूक और संवेदशील नागरिक नाराज हुए। रिजवान की मां किश्वरजहां के साथ अनेक लोगों ने धर्मतला में धरना भी दिया। टीपू सुल्तान मसजिद के इमाम ने शाहरूख की फिल्मों के बहिष्कार का फतवा भी जारी किया। पोस्टर फाड़े गए। शाहरूख और टोडियों के जरखरीद मीडिया ने इस खबर को दबाने का भरसक प्रयास किया। लेकिन मीडिया अभी भी इतना शक्तिशाली नहीं हुआ है कि जनता की बुलंद आवाज का गला घोंट सके।

जनता की नब्ज पहचान कर शाहरूख ने अपने प्रवक्ता के जरिए टोडियों के साथ हुए करार को स्थगित रखने की घोषणा की। यानि जब तक अशोक टोडी, प्रदीप टोडी और प्रियंका के मामा अनिल सरावगी बाइज्जत बरी नहीं हो जाते, तब तक करार स्थगित ही रहेगा।

जनता की आवाज पर शाहरूख का यह फैसला काबिले तारीफ है, मगर सवाल यह है कि इतने बड़े करार के पहले शाहरूख ने टोडियों के रिकॉर्ड की जांच क्यों नहीं करवायी। कोई भी करोड़ों रुपए की हड्डी डाल दे तो क्या शाहरूख (तथा अन्य तथाकथित स्टार) बिना सोचे-समझे उस पर टूट पड़ते हैं? अगर ऐसा नहीं है, तब फिर जानबूझ कर शाहरूख ने कुख्यात टोडियों के 35 करोड़ भला किस नीयत से स्वीकार किए? शाहरूख के साथ-साथ सौरव गांगुली की नीयत पर भी सवाल उठना लाजिमी है। सौरव को तो सब कुछ पता है, भले ही टोडियों से उसका निजी-राजनीतिक रिश्ता हो।

बहरहाल, शाहरूख की घोषणा के बावजूद विभिन्न चैनलों में टोडियों के विज्ञापनों में शाहरूख, सौरव, अगरकर आदि हंसते-मुस्कुराते दिखायी दे रहे हैं। शाहरूख ने अगर सचमुच नैतिकता और अपने विवेक की सुनकर उक्त फैसला किया है तो उसे चाहिए कि ऐसे तमाम विज्ञापनों को भी तुरंत रोक दिया जाए। (शाहरुख पर एक किश्त और भी)

गुरुवार, 2 जून 2011

रिजवान के ‘हत्यारों’ से शाहरूख को पैंतीस करोड़ : एक पुरानी रिपोर्ट


रिजवान के हत्यारों से शाहरूख को पैंतीस करोड़

किरण पटनायक

कोलकाता : अजीब संयोग है। मुंबई में बैठे एक हिंदू कठमुल्ला नेता ने शाहरूख की नयी फिल्म के बहिष्कार का फरमान सुनाया तो दूसरी ओर भारत के पूरब में कोलकाता के टीपू सुल्तान मसजिद के शाही इमाम ने भी शाहरूख के फिल्म के विरोध का फतवा जारी किया। और, दोनों ही लगभग फ्लॉप रहे। मगर दोनों विरोध में बुनियादी फर्क है। मुंबई के डॉननुमा नेता ने अपनी तेजी से घटती खास को वापस जमाने या परखने के लिए एक बेहद गैरजरूरी मामले को हवा दी, जिससे आखिरकार कुल मिलाकर उसे व्यापक बदनामी ही हाथ लगी; बल्कि मुंह की खानी पड़ी। जबकि दूसरी ओर कोलकाता में हो रहा विरोध नैतिकता की कसौटी में सकारात्मक रहा।

दिलचस्प फर्क यह भी है कि मुंबई के कूपमंडूक नेता या दादा के विरोध को मीडिया में जरूरत से बहुत ज्यादा स्पेस मिला तो कोलकाता के इमाम और रिजवान परिवार की खिलाफत कहीं कोने में पड़ी सिसकती रही। जिस प्रभावशाली और अरबपति शाहरूख की वजह से मुंबई के संकीर्णतावादी व घोरस्वार्थी नेता के विरोध को मीडिया ने इतना ज्यादा तरजीह दी, उसी शाहरूख और उसके नए मित्र टोडी परिवार के कारण कोलकाता की खबर को लगभग दबा दिया गया।

कैप्शन : प्रियंका-रिजवान साथ-साथ

मुंबई के घटिया दर्जे के नेताओं के शाहरुख विरोध की कहानी के एक-एक शब्द से देश की जनता वाकिफ हो चुकी है, मगर कोलकाता के रिजवान परिवार और इससे जुड़े लोगों के शाहरुख विरोध के बारे में बहुत कम लोग जान पाये। सो यहां सिर्फ कोलकाता के विरोध को ही दर्ज किया जा रहा है।

11 फरवरी के दिन कोलकाता के धर्मतला के मेट्रो रेलवे स्टेशन के करीब शाहरुख खान के खिलाफ एक अनोखा धरना कार्यक्रम आयोजित हुआ। इस घरना में रिजवान परिवार सहित चंद बुद्धिजीवी और टीपू सुल्तान मसजिद के शाही इमाम भी शामिल हुए। मंच पर रिजवान

कैप्शन : रिजवानुर रहमान

की एक बड़ी तस्वीर लगी थी। और बगल में उसकी मां किश्वरजहां के साथ 2-4 दर्जन लोग हाथ में मोमबत्ती लिये बैठे थे। धरना मंच से ही शाही इमाम ने शाहरुख की नयी फिल्म का बहिष्कार करने का फतवा सुनाया। और फिल्म के पोस्टर भी फाड़े गए।

मां किश्वरजहां : इंसाफ की उम्मीद में

आखिर क्यों हो रहा है कोलकाता में शाहरुख का विरोध? दरअसल, पिछले दिनों शाहरुख ने कोलकाता के एक ऐसे कुख्यात होजियारी उद्योगपति अशोक टोडी, प्रदीप टोडी और टोडी परिवार के रिश्तेदार अनिल सरावगी के साथ करोड़ों रुपए का विज्ञापन समझौता किया, जिनका नाम रिजवानुर रहमान की हत्या से जुड़ा हुआ है। यह विज्ञापन प्रसारित भी होने लगा है। 2007 में इस हत्याकांड पर कोलकाता महीनों आंदोलित होता रहा था। और जनांदोलन और अदालत के दबाव पर आखिरकार मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य को सीबीआई जांच का आदेश देना पड़ा था। हालांकि सरकारी तथा टोडी परिवार के करोड़ों रुपए के दबाव पर सीबीआई ने बेशर्मी से लीपापोती करके इस हत्याकांड को आत्महत्या करार दिया था। कोलकाता सहित बंगाल का जागरूक नागरिक सीबीआई के इस पूर्वनिर्धारित निष्कर्ष से सहमत नहीं है। यहां तक कि कोलकाता के अधिकांश राजस्थानी-मारवाड़ी परिवार भी इसे हत्याकांड ही मानते हैं। भले ही वे रिजवान-प्रियंका के विवाह से सहमत न हों।

लोगों के इस विश्वास के पीछे वो सारे परिस्थितिजन्य प्रमाण रहे हैं, जिनसे यही पता चलता है कि रिजवान की हत्या की गयी। इसके अलावा टोडी परिवार और पुलिस के उच्चाधिकारियों की मिलीभगत भी हत्या की ओर ही इशारा करती है। अपने घर से कोई 15 किमी दूर रेलवे पटरी पर रिजवान की अक्षत लाश से भी लोगों का विश्वास पुष्ट हुआ। इन सबसे के अलावा और भी दर्जनों प्रमाणों से यही पता चलता है कि रिजवान की हत्या की गयी। पारिवारिक सदस्यों के अनुसार आत्महत्या का तो सवाल ही नहीं उठता है। रिजवान परिवार इस मामले को हत्या का मामला मान कर ‍ही मुकदमा लड़ रहा है।

लोगों का मानना है कि सीबीआई ने उच्चस्तरीय दबाव पर और रिश्वत खाकर हत्या को आत्महत्या बना तो दिया, मगर जनरोष के भय से इस आत्महत्या के लिए चार-पांच बड़े पुलिस अधिकारियों और टोडियों को जिम्मेदार घोषित किया। फिर भी राज्य सरकार ने उन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं की और न ही टोडियों को गिरफ्तार किया गया। बाद में अदालत के आदेश पर चाेर पुलिस अधिकारी गिरफ्तार किए गऐ और उन्हें जमानत पर छोड़ भी दिया गया। अदालत के आदेश पर ही टोडियों की गिरफ्तारी हुई और उन्हें महीनों जेल में रहना पड़ा। बाद में, पता नहीं कानून के किस चोर-दरवाजे से उन्हें जमानत दे दी गयी। जबकि आम नागरिकों को इस चोर दरवाजे की चाबी मिलती ही नहीं। बहरहाल, यह मामला अदालतों में जारी है। और लोगों को उम्मीद है कि देर-सबेर टोडी परिवार सहित पुलिस अधिकारियों को जेल की हवा खानी ही पड़ेगी। ठीक उसी तरह जैसे कि इसी कोलकाता के एक भुजिया सेठ को एक गरीब की हत्या की कोशिश में आजीवन सश्रम जेल की सजा सुनायी गयी।

टोडी परिवार की रिजवान से क्या दुश्मनी थी? अशोक टोडी की बेटी प्रियंका ने रिजवान से प्रेम-विवाह कर लिया था। प्रियंका जिस कंप्यूटर संस्थान में प्रशिक्षण ले रही थी, रिजवान वहां एक इंस्ट्रक्टर था। हमउम्र होने के कारण दोनों में मित्रता हुई और बात शादी तक जा पहुंची। प्रियंका के बारे में संस्थान में किसीको यह पता नहीं था कि वह किसी अरबपति परिवार की संतान है। रिजवान भी नहीं जानता था। काफी बाद में सबको इसका पता चला।

प्रियंका ने अपने परिवार के भय से चुपके से कोर्ट में शादी करने का प्रस्ताव रखा और दोनों की कानूनी शादी हो गयी। प्रियंका रिजवान के पार्क सर्कस स्थित तिलजला के घर में रहने चली गयी। न चाहते हुए भी मां सहित पूरे परिवार ने स्वीकार कर लिया। कोई उपाय भी न था। लेकिन टोडी परिवार के पास एक अन्य उपाय था। टोडियों ने जाल बिछाया। साम-दाम-दंड-भेद आजमाने के बाद पिता की बीमारी के बहाने अपने घर बुला कर नजरबंद कर लिया। और, बड़े रहस्यमय ढंग से रिजवान की हत्या करवा दी गयी। इस षडयंत्र में कोलकाता पुलिस के बड़े-बड़े अधिकारियों सहित तत्कालीन पुलिस आयुक्त प्रसून मुखर्जी भी शामिल रहे।

इस हत्या का विरोध न सिर्फ मुसलमानों ने किया; बल्कि कोलकाता-बंगाल के लाखों नागरिकों ने किया। हजारों बुद्धिजीवी-कलाकारों सहित कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और आम नागरिकों ने महीनों तक आंदोलन चलाया। उन्हें एक हद तक सफलता भी मिली। लेकिन रिजवान के हत्यारों को पूरी तरह से सजा नहीं मिल जाती, तब तक रिजवान परिवार सहित लाखों कोलकातावासी शांत नहीं रहनेवाले। 11 फरवरी को भले ही धरना मंच पर हजारों-लाखों की भीड़ न जुटी हो, मगर रिजवान की हत्या पर टोडी परिवार और पुलिस विभाग के खिलाफ आमलोगों का गुस्सा ठंडा नहीं हुआ है।

इसी बीच टोडी परिवार ने शातिराना चाल चलते हुए आईपीएल के कोलकाता नाइट राइडर्स के कारण बंगाल में सर्वाधिक लोकप्रिय बन चुके शाहरूख के साथकरोड़ों का विज्ञापन समझौता कर लिया। इससे पहले सनी देओल के साथ दो-चार करोड़ रूपए का समझौता किया गया था। लेकिन शाहरूक के साथ पैंतीस करोड़ का समझौता किया गया। शाहरूख में एक खासियत यह भी है कि उसने मुसलमान परिवार में जन्म लिया है और वह बार-बार कहता भी है कि उसे भारतीय मुसलमान होने पर गर्व है। रिजवान हत्याकांड के आरोपी इस तरह एक तीर से कई शिकार करना चाहते रहे।

लेकिन शाहरूख को क्या हुआ है? क्या सारी बड़ीबड़ी बातें सिनेमाई डायलॉग भर हैं? क्या शाहरूख इतने लालची हैं कि हत्या के आरोपियों के सामने पैंतीस करोड़ रुपए के लिए समर्पण कर दें? टोडियों ने बड़े गर्व से घोेित किया कि तीन साल में शाहरुख पर पैंतीस करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे और इससे कंपनी को पांच सौ करोड़ रुपए से अधिक का मुनाफा होगा। टोडी परिवार इनरवेयर के धंधे में हैं।

यह सच है कि सचिन, अमिताभ, आमिर, शाहरुख, सौरव, अक्षय आदि से लेकर लगभग तमाम बड़े फिल्मी कालाकर और क्रिकेटर पैसे के लिए जहर तक का विज्ञापन कर सकते हैं। शीतलपेय आखिर एक प्रकार का धीमा जहर ही तो है। इन तथाकथित महान कलाकार्रों और खिलाडि़यों को जूते चप्पल बेचते देख, प्रशंसकों के सिर शर्म से झुक जाते हैं तो क्या हुआ? इन लालचियों को किसी भी तरीके से बस पैसे कमाने हैं!! यहां-वहां के घटिया डॉनों के अड्डों पर जाकर इन्हें भड़वा डांस भी करते देखा गया है। लेकिन हद तो तब हो जाती है कि टोडी जैसे कुख्यात हत्यारों के हाथ शाहरुख जैसा बात-बहादूर भी बिक जाए।

मुंबई के डॉन का विरोध कमजोर पड़ता जा रहा है। तो कोलकाता के नैतिकतावादियों का शाहरुख विरोध बढ़ता जा रहा है। शाहरुख, लालच बुरी बला है!! (समाप्त)