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शनिवार, 13 अक्तूबर 2012

अरविन्द केजरीवाल: अन्ना आंदोलनकारी से “सुपारी” आंदोलनकारी!!

आन्दोलन की पूरी "तस्वीर" से विकलांग ही गायब!


१. ९ अक्तूबर: रात कोई आठ बजे. आज तक चैनल सलमान खुर्शीद और उनकी बीवी के जाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा विकलांगों की लूट की खबर बड़ी सनसनीखेज अंदाज में शुरू होती है. खबर सच ही है. सारी बातों से ऐसा ही लगता है.

ये खबर कुछ इस तरह पेश की जाती है, मानो अरुण पुरी के
इंडिया टुडे के उक्त चैनल ने एकदम अपनी ही पहल पे ये खबर खोज निकाली हो. जबकि बाद की घटनाओं से ये बात बड़े हद तक साफ़ हो जाती कि ये खबर उसकी अपनी खोज नहीं है.

बहरहाल, इस खबर के प्रसारित होने के साथ ही पूरे देश में हंगामा मच जाता है, जो कि स्वाभाविक है. और, अन्य अनेक मामलों की तरह रॉबर्ट वढेरा मुद्दा भी थोड़ा दब जाता है. और, चारों ओर सलमान ही सलमान. ये मुद्दा इसीलिए भी आम लोगों में जोर पकड़ता है, क्योंकि यह विकलांगों से जुड़ा मामला है. ऊपर से. सलमान खुर्शीद की अनेक बदतमीजी और चाटुकारिता से भी लोग खासे चिढे हुए हैं. सो, यह मुद्दा और भी तेज़ी से फैलने लगता है.

२. गौरतलब है कि अब तक (९ अक्टूबर, रात आठ-नौ बजे) इस पूरे दृश्य  में  अरविन्द केजरीवाल कहीं भी नहीं. होना भी नहीं था. क्योंकि ये तो उक्त चैनल की अपनी खास
खोज खबर थी. लेकिन, दूसरे दिन ही अरविन्द इस मामले में कूद पड़ते हैं और सलमान से इस्तीफे की मांग करते हैं.

 
 वढेरा मुद्दे उठा रहे और दिल्ली चुनाव अभियान चला रहे अरविन्द केजरीवाल ने इसे हाथों-हाथ लपक लिया. तो क्या यह सिर्फ एक संयोग है या पहले से तैयार कोई योजना? उक्त चैनल जब अपना पोल खोल चला रहा था, तब उस कार्यक्रम में अरविन्द टीम के भी एक प्रतिनिधि मौजूद थे. वे अरविन्द के कहने पे ही वहां उपस्थित होंगे, इसमें कोई शक नहीं. यानि, इस पोल खोल की सूचना अरविन्द को पहले से ही थी. और, बहुत  संभव है कि पोल खोल के बाद क्या कुछ करना है, ये भी पहले से ही तय हो. अर्थात, इस दलाल मीडिया द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम व आंदोलन का नेतृत्व अरविन्द को करना है, ये पहले से ही तय था!! तो क्या ये अन्ना आंदोलनकारी अब 'सुपारी" आंदोलनकारी बनता जा रहा!!

यह  दलाल मीडिया मनमोहन सरकार के एक खास मंत्री के खिलाफ अभियान-आंदोलन चलाने को क्यों इतना उत्सुक? मनमोहनी आर्थिक सुधारों और अमेरिका का बड़ा  समर्थक है ये मीडिया समूह. खुदरा में एफडीआई मामले सहित विभिन्न मुद्दों पे इस मीडिया समूह की नीति अमेरिका पक्षी ही रही है. अन्ना आंदोलन में भी फूट की ख़बरें ये अक्सर ही बढ़ा-चढ़ा कर पेश करता रहा है.


बहरहाल, हालांकि ये खबर भी कोई एक साल पुरानी होने के बावजूद ९ अक्टूबर की रात उक्त चैनल सलमान की पोल खोल करता है. उसके दूसरे दिन अरविन्द सलमान से इस्तीफे की मांग करते हैं. और, उसी दिन तय होता है विकलांग संगठन द्वारा सोनिया के घर के सामने विरोध प्रदर्शन करना. विकलांगों के संगठन के इस प्रदर्शन में अरविन्द शामिल होने की घोषणा करते हैं. बाद में, विकलांग संगठन अपना फैसला बदल देता है और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सामने प्रदर्शन करना तय करता है...खैर जो भी हो, उसमें भी अरविन्द के शामिल होना तय रहता है... 

यहां देखने की बात ये है कि ये विकलांग संगठन का आंदोलन बड़ी आसानी से अरविन्द द्वारा हाइजैक कर लिया जाता है. एकाध विकलांग
नेता का नाम ही कुछ लोगों को याद  होगा, जबकि चारों ओर सिर्फ अरविन्द-अरविन्द ही छाये  हुए. मीडिया भी बड़े योजनाबद्ध तरीके से एकदम शुरू से ही विकलांग संगठन की सरासर उपेक्षा करता हुआ सिर्फ अरविन्द-अरविन्द करता है. ऐसा क्यों? जब ये आंदोलन विकलांगों का और उनके संगठन का था और है तो फिर एक बाहरी व्यक्ति को मसीहा बनाकर पेश करने का मतलब क्या हुआ??

अरविन्द की पुरानी आदत है, आंदोलनों-अभियानों को हाइजैक करने का. अन्ना आन्दोलन को भी उसने हाइजैक करने की भरपूर कोशिश की, मगर अन्ना ने उसे सफल होने नहीं दिया. वरना, अब अन्ना का फोटो उसके दिल में ही रहता और बाहर अन्ना के सारे आदर्श-सारे विचार रद्दी में पड़े होते. उसकी ये बुरी आदत और हीरो बनने की चाहत को मीडिया और मीडिया के असल सूत्रधार अच्छी तरह जानते हैं. इसीलिए इस मामले में भी उसे हीरो बनाया जा रहा. और वो बड़ी खुशी-खुशी
महान क्रांति कर रहा!! इस व्यक्ति को दलाल मीडिया क्यों खड़ा कर रहा, इसे पुराने अनुभवी तटस्थ लोग बखूबी समझ सकते हैं.

खैर! ९ अक्टूबर को उक्त चैनल सलमान मामले की पोल खोलता है. उसके दूसरे दिन सुबह ही अरविन्द इस मामले में कूद पड़ते हैं. और उसी दिन शाम में खबर आती है कि कैग ने भी उक्त चैनल की रिपोर्ट  पे अपनी मुहर लाग दी.. (ये और बात है कि बाद में पता चलता है कि यह कैग की अंतिम रिपोर्ट नहीं है. फिर भी इसमें शक नहीं कि सलमान परिवार ने घपला किया ही है.).

क्या ये एक बहुत बड़ा संयोग है? चैनल, अरविन्द और कैग!! यहां मेरा ये मतलब नहीं कि इस सुनियोजित पोल-खोल और आन्दोलन में कहीं से भी कैग का कोई हाथ है. चैनल को कैग की बन रही प्रारम्भिक रिपोर्ट की भनक लगी और उसने इस मुद्दे की थोड़ी ज़मीनी पड़ताल भी कर ली. और, अरविन्द को तो चाहिए ही
हीरो बनने के मुद्दे. और, शुरू हो गयी  एक ध्यान भटकाओ मुहिम!!

एफडीआई के अलावा मनमोहन सरकार के सारे बड़े-बड़े घोटालों और महंगाई घोटाले से लोगों का ध्यान हटाने के लिए लाया गया वढेरा कांड भी एक हद तक दब गया!! सलमान के इस्तीफे की मांग को इस तरह से पेश किया जा रहा, मानो इससे मनमोहन सरकार एकदम स्वच्छ बन जाएगी. उसके सारे पाप कट जाएंगे.

जबकि अभी मनमोहन सरकार के इस्तीफे की ही मांग लेकर देशव्यापी एक व्यापक अ-राजनीतिक किस्म का आंदोलन चलाया जाना चाहिए.####


 

सोमवार, 8 अक्तूबर 2012

माओवादियों जितनी "सफलता" भी नहीं मिलनी अरविन्द टीम को

अन्ना आंदोलन ही है एकमात्र विकल्प. इससे ही निकल पाएगा कोई स्वस्थ-सशक्त विकल्प. इस आंदोलन में फूट डालने वालों को "सफलता" नहीं मिल सकती!!  इस ऐतिहासिक आंदोलन को खत्म करने की  साज़िश में लगे  दलों  और नेताओं  का दरअसल कोई भविष्य नहीं!!