चुनाव मशीनों
में ट्रॉजन जिन्न
सीआईए का
षडयंत्र !
विशेष
संवाददाता
(यह लेख भी कोई तीन साल पहले लिखा गया. इससे भी ईवीएम में की जा रही भारी गडबडी की पुष्टि होती है) ------------------------------------------------------------
(यह लेख भी कोई तीन साल पहले लिखा गया. इससे भी ईवीएम में की जा रही भारी गडबडी की पुष्टि होती है) ------------------------------------------------------------
नई दिल्ली : भारतीय चुनाव प्रक्रिया को क्या
सीआईए नियंत्रित कर रहा है? राजनीतिक हलकों में यह सवाल उठने लगा है। यह कोई हवाई
सवाल नहीं है, बल्कि खुद सीआईए के एक एजेंट ने अमेरिकी संसद में कहा है कि सीआईए
ने ट्रॉजन के जरिये कोई 25 देशों की चुनाव प्रक्रिया को मनमाने ढंग से प्रभावित
किया है। ऐसे में यह प्रशन पूछना स्वाभाविक है कि क्या 2009 के लोकसभा चुनाव में
भी सीआईए ने ही षडयंत्र करके कांग्रेस-संप्रग की सरकार बनवायी ? 2009 के लोकसभा
चुनाव के परिणामों पर बहुत पहले से ही अंगुली उठायी जाती रही है और चुनाव मशीनों
में हेर-फेर के आरोप लगाये जा रहे हैं।
इन आरोपों को
चुनाव आयुक्त बार-बार खारिज करते रहे हैं, फिर भी आरोपों का दौर बदस्तूर जारी है।
सीपीएम महाेचिव प्रकाश करात ने मुख्य चुनाव आयुक्त को पत्र लिखकर ईवीएम मशीनों की
विश्वसनियता पर सवाल खड़े किए हैं और सर्वदलीय बैठक की मांग की है। ध्यान रहे कि
2009 के लोकसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद से ही ईवीएम में हेरफेर का आरोप लगने
लगा था। बाद में भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी द्वारा मशीनों पर संदेह व्यक्त करने
से मामला तूल पकड़ने लगा। लाल प्रसाद-पासवान-जयललिता-सीपीएम सहित अनेक नेताओं और
दलों ने इसकी विश्वसनियता पर सवाल उठाये। लेकिन चुनाव आयोग अपनी पर अड़ा रहा।
गौरतलब है कि इन दिनों चुनाव आयोग के तीनों आयुक्त कांग्रेस समर्थक माने जाते हैं।
मुख्य चुनाव आयुक्त नवीन चावला खुल्लमखुल्ला कांग्रेसी रहे हैं।
ध्यान रखना जरूरी
है कि चुनाव आयुक्त और वहां के अन्य अधिकारी सूचना तकनीक के विशेषज्ञ नहीं हैं। वे
अपने तकनीकी विषयों पर निर्भर हैं। ईवीएम से जुड़ी कोई भी बड़ी जानकारी आयोग के
पास नहीं है। पूर्व आईएएस अधिकारी और आईआईटी के मैकेनिकल इंजीनियर उमेश सहगल के
अनुसार ‘सारा खेल ईवीएम बनानेवाली कंपनियों के हाथ में है,
जो बहुत कुछ छिपा रही हैं। चुनाव आयोग जिस सोर्स कोड को पास करता है, उसे चिप की
भाषा यानि ऑब्जेक्ट कोड में बदलने के बाद आयोग को दिखाया नहीं जाता। यहां बड़ी
आसानी से चिप का प्रोग्राम बदला जा सकता है। अमेरिका का माइक्रो चिप कारपोरेशन और
जापान की हिताची हमारे ईवीएम चिप बना रही है, जो उसमें भरे विवरण को मास्क कर देती
है। अर्थात् उसके बारे में कुछ भी जानना मुश्किल है। जिस सोर्स कोड को चुनाव आयोग
ने पास किया, वह भी उनके पास नहीं है। यह देश के लिए गंभीर खतरा है।’
उमेश सहगल आगे
कहते हैं ‘सीआईए के एक एजेंट ने अमेरिकी कांग्रेस में कहा कि
सीआईए ने ट्रॉजन के जरिये 25 देशों के चुनावों में हेरा-फेरी की है। तो क्या भारत
भी उन देशों में एक है? सत्ता में बैठे लोगों को मेरी बात नागवार लगेगी, मगर
उन्हें समझना चाहिए कि कल उनके साथ भी ऐसा हो सकता है। क्योंकि चुनाव मशीन की चाबी
कहीं बाहर है। इसके अलावा ईवीएम बनानेवाली बीईएल और ईसीआईएल हमारे लिए रक्षा उपकरण
भी बनाती है। पनडुब्बी, रडार, मिसाइल समेत सभी रक्षा उपकरणों में चिप लगे होते
हैं। क्या इनके चिप भी बाहर से बन कर आते हैं? अगर ऐसा है तो इनके बारे में सारी
जानकारी अन्य देशों के पास भी हैं, जो भारत के लिए खतरनाक हैं।’
सहगल की बातों से समझा जा सकता
है कि मामला कितना गंभीर है। गौरतलब है कि कांग्रेस-संप्रग की जीत पर सबसे पहले
अमेरिका ने सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह को बधाई भेजी थी। हमारे प्रधानमंत्री
अमेरिका के सबसे बड़े हितचिंतक बन कर उभरे हैं। अमेरिकी कंपनियों के लिए भारत के
सारे दरवाजे खोल दिए जा रहे हैं। यहां तक कि भारत में नाभीकीय पार्क बनाने के लिए
भी अमेरिका को विशेष छूट दी जा रही है। ऐसे में अमेरिका और उसकी सीआईए ने
कांग्रेस-संप्रग को जीताने के लिए चुनावी षडयंत्र किया हो, तो इसमें अचरज की बात
नहीं।
ईवीएम बनाने का जिम्मा कहने भर
को इलेकट्रॉनिक कारपोरेशन ऑफ इंडिया (ईसीआईएल) और भारत इलेकट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल)
के पास है। लेकिन इसका दिल यानि चिप अमेरिका और जापन की दो कंपनियां बनाती हैं।
इन्हीं कंपनियों के कर्मचारियों द्वारा ईवीएम का रक-रखाव किया जाता है, यहां तक कि
वोटों की गिनती के मसय ये लोग वहां होते हैं। यह तो भारत की संप्रभुता और निष्पक्ष
चुनाव प्रक्रिया के साथ खिलवाड़ है।
ईवीऐम के इस्तेमाल को फायदेमंद
बताते हुए विशेषज्ञों ने कई सुझाव दिए हैं, मगर भारत में उन पर अमल नहीं किया जा
रहा है। ‘इंटरनेशनल इलेक्ट्रिकल एंड इलेकट्रॉनिक्स
इंजीनियरिंग’ नामक पत्रिका में कंप्यूटर साइंस के दो प्रोफेसरों
ने एक लेख लिखा है, जिसमें ईवीएम के साथ कुछ सावधानियां बरतने के लिए नौ उपाय
सुझाये हैं। इनमें एक पर भी भारत में अमल नहीं किया जा रहा है। अमेरिका में ईवीऐम
के उपयोग के लिए स्पष्ट निर्देश हैं। भारत में वैसे किसी निर्देश को लागू नहीं
किया जाता। 2004 में अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में धांधली के आरोप के बाद पेपर
ट्रेल के उपयोग का कानून बना। पेपर ट्रेल का मतलब उस पर्ची से है जो वोट का बटन
बनाने के बाद मशीन से बाहर आती है। उस पर्ची में डाले गए वोट की पुष्टि होती है।
पेपर ट्रेल को देखने के बाद मतदाता उसे पास पड़े डिब्बे में डाल देता है। अगर
चुनाव नतीजे को लेकर विवाद हुआ तो उन पर्चियों की गिनती कर नतीजा घोषित किया जाता
है। दिल्ली के आईआईटी के पूर्व छात्रों के संगठन के चुनाव में भी पेपर ट्रेल का
बंदोबस्त है, मगर दुनिया के सबसे बड़े जनतंत्र के चुनाव में संभवतया जान-बूझ कर
इसकी व्यवस्था नहीं रखी गयी।
ट्रॉजन के बारे में उमेश सहगल
कहते हैं, ‘ईवीएम में इस्तेमाल की जानेवाली इलेकट्रॉनिक चिप को
बनाते समय उसमें ऐसा प्रोग्राम डाला जा सकता है जिससे हर तीसरा या चौथा वोट किसी
खास उम्मीदवार को मिल जाए। जैसे संप्यूटर में वायरस होता है, उसी तरह ईवीएम के चिप
में ट्रॉजन डाला जा सकता है; जिसे मैं दोगला प्रोग्राम कहता हूं। यह वैसे तो सोया
रहेगा, पर इसे वोटिंग से लेकर काऊंटिग तक कभी भी जगाया जा सकता है। वोटिंग के
दौरान वोट किसीको मिला हो, ट्रॉजन को एक्टिवेट करने के बाद ईवीएम वही दिखाएगा, जो
ट्रॉजन के प्रोग्राम में डाला गया है। इसे वायरलेस के जरिये भी एक्टिवेट कर सकते
हैं।’
सहगल काफी समय से ईवीएम को लेकर
सवाल उठा रहे हैं। पर चुनाव आयोग कुछ नहीं कर रहा है। सहगल की चुनौती को देखते हुए
चुनाव आयोग ने उन्हें ईवीएम की खामी निकालने को कहा। उन्हें चुन कर किन्हीं तीन
ईवीएम में से खोट निकालने के लिए कहा गया। सहगल अपने साथ तीन लैपटॉप भी ले गए थे।
उन्होंने चुनाव आयोग के विशेषज्ञों से कहा कि इनमें से एक में ट्रॉजन है। और बाकी
दो ठीक हैं। ट्रॉजन वाले कंप्यूटर की पहचान की जाए। वो विशेषज्ञ असफल रहे। इसका
मतलब यह नहीं कि उनके तीनों लैपटॉप ठीक-ठाक थे। सहगल कहते हैं, ‘मैं
वहां अपनी बात साबित कर सकता था, मगर उन्होंने कहा कि आप मशीन से छेड़छाड़ नहीं
करेंगे। क्या यह संभव है? तब भला मशीन की जांच होगी कैसे? इसके बाद उन्होंने कहा,
मशीन में गड़बड़ी हुई तो यह बात आप बाहर नहीं बताएंगे। यह भी संभव नहीं था। सो
मैंने मना कर दिया।’
बहरहाल, इस ईवीएम घोटाले में एक
केंद्रीय मंत्री का नाम सामने आ रहा है। हालांकि सहगल उनका नाम फिलहाल नहीं बताना
चाहते। उनका कहना है कि इसकी जांच अगर सीबीआई या केंद्रीय सर्तकता आयुक्त द्वारा
करवायी जाए तो वे नाम बताने को तैयार हैं। उनका कहना है कि 2004 में केंद्रीय
मंत्री बनने से पहले वे उस कंपनी के डायरेक्टर थे, जो सबसे पहले ईवीएम लेकर आयी।
सहगल ही नहीं, अनेक लोग ईवीएम में गड़बड़ी के सबूत सहित आरोप लगाते
रहे हैं। अब भी लगा रहे हैं। 2000 में मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट के संजय शर्म और
हावर्ड की गीतांजलि स्वामी ने तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त एमएस गिल को दिखाया था
कि इसके चिप से छेड़छाड़ की जा सकती है। उसके बाद कुछ सुधार हुए, मगर मूल समस्या
जैसी की तैसी बनी रही। 2004 में उच्चतम न्यायालय ने भी हस्तक्षेप करते हुए
सॉफ्टवेयर इंजीनियर सतीनाथ चौधरी की बतायी कमियों पर विचार करने को चुनाव आयोग से कहा
था, पर कुछ खास नहीं हुआ। ऐसी स्थिति में अब यह अनिवार्य रूप से जरूरी हो गया है
कि ऐक सर्वदलीय विशेषज्ञ समिति के जरिये ईवीएम की खामियों को दूर करने के उपाय किए
जाएं। वरना सीआईए जैसी साम्राज्यवादी खुफिया एजेंसियां भारतीय जनतंत्र के साथ
खिलवाड़ करती रहेगी। (समाप्त)