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सोमवार, 6 अगस्त 2012

अन्ना आन्दोलन की आत्म-आलोचना

 अन्ना टीम ये बताए कि "अंतिम कुर्बानी" का नारा कब दिया जाता है?
क्या  इसे  रूमानी क्रांतिकारिता कही जाय या  फिर बचकानापन या शुद्ध लफ्फाजी ?
इस तरह की नारेबाजी से बचा जाय. बाबा रामदेव भी कुछ इस तरह का बचकानापन करते दिख रहे.

इस पोस्ट में पिछले तीन दिनों में मेरे दिये सुझाव व अन्ना आन्दोलन की आत्म-आलोचना  को एक साथ पेश की जा रही है. ये सुझाव व आलोचना अन्ना आन्दोलन को मजबूती प्रदान करने के ही उद्देश्य से है. इसपे सभी साथी गंभीरता से ध्यान दें.

इस पोस्ट में कुछ नयी बातें भी दी जा रही हैं, जिन्हें रेखांकित किया जा रहा.

४ अगस्त
राजनीतिक विकल्प के लिए अन्ना आन्दोलन ने "हाँ" या "ना" में जो एसएमएस जवाब मगवाये हैं, वो सही नहीं. आम जनता से उनके पूरे विचार मंगवाए जाएँ.

२. और, जो व्यक्ति "विकल्प" पे अपने पूरे विचार रखे, उसका नाम-पता-फोन-मेल आदि भी हो. इससे उस व्यक्ति की सच्चाई-ईमानदारी का पता चल पाएगा.

३..आम जनता के भेजे सभी विचारों को पढ़ा जाय. यह काम ईमानदार-त्यागी बुद्धिजीवियों की बड़ी समिति करे. इसपे मंथन हो. छोटे-बड़े सेमीनार हों.

४..विभिन्न राज्यों के हज़ारों गांवों-मुहल्लों में इसपे कईकई बार "चर्चा समूह" आयोजित हो. जनता केबीच गहन चर्चा.फिर वहां जनसंघर्ष समिति बने.

५..जो लोग अपने मौजूदा दलों-नेताओं के बचाव में अनर्गल बकवास कर रहे, वैसे लोगों की पहचान उनके नाम-पते-फोन आदि से कर ली जाय.वे पूर्वाग्रही.

६.. "राजनीतिक विकल्प" के लिए हडबडी करने की कोई ज़रूरत नहीं. उक्त प्रक्रिया से हमलोग जनलोकपाल आन्दोलन को और व्यापक बना सकते हैं.

७.सबको पता, हमारा उद्देश्य मजबूत जनलोकपाल.और, देश की संसद में सच्चे देशभक्तों को भेजना.इसके लिए एकएक गांव-मुहल्लों पे ध्यान केंद्रित हो.

 ८. जनलोकपाल के साथ अब पूर्ण चुनाव सुधार की मांग भी बेहद जरुरी. इसके बिना आगे का रास्ता नहीं खुलने वाला. इसपे भ राय मंगवाएं.

सेना के दो महान सैनिक एक साथ. अब दोनों ही देश के अंदर के जनता के दुश्मनों से लड़ने को कटिबद्ध: 

५ अगस्त


आमरण अनशन एक ब्रह्मास्त्र. इसे एकदम अंत में चलाया जाता. और, उस “अंत” को ठीक से समझ लेना जरुरी. वरना,  ब्रह्मास्त्र भी  फुस्स साबित हो सकता.



२. आमरण अनशन रूपी इस ब्रह्मास्त्र के चलाये जाने की टाइमिंग पे ही अन्ना आन्दोलन, खासकर अरविन्द टीम ने बड़ी भारी भूल की  है.



३. इस भूल की ओर मैं “बाद में” इशारा नहीं कर रहा, बल्कि कुछ साथियों को याद होगा कि मैंने कोई महीना भर पहले ही इस बारे कहा था.



४. तब मैंने अरविन्द आदि से कहा था कि आमरण अनशन करना जरुरी नही, आन्दोलन के हजारों तरीके. मगर, उन सबने बात नहीं सुनी. क्यों?



५. अरविन्द व अन्य साथी क्यों आमरण अनशन करने की जिद पे अड़े रहे? इस सवाल का जवाब वे खुद यहां दें तो बेहतर. (वैसे यह प्रक्रिया और इसके पीछे की मानसिकता मैं अच्छी तरह समझ रहा, जिसपे फिर कभी.).



६. अरविन्द और साथियों को समझना चाहिए कि यह देश का मामला. बच्चों की “जिद” के लिए यहां कोई जगह नहीं.



७/१. अरविन्द बार-बार ये कहते रहे कि हम देश के लिए कुर्बानी देने को तैयार हैं, और डायबिटीज वाले क्यों नहीं दे सकते देश के लिए  कुर्बानी!



७/२. ये अच्छे बोल, मगर, इसकी टाइमिंग गलत. इसे बचकानापन भी कह सकते. ऐसे बचकानेपन से देश बचाओ आन्दोलन नहीं चलता.



८/१ . अरविन्द व साथी यहां जवाब जरुर दें. मैं उन सबसे बहुत-बहुत प्यार करता. वे सच्चे देशभक्त हैं. भूल सबसे होती है. उसे  स्वीकारना भी जरूरी.



८/२. अरविन्द व साथी आत्मआलोचना करें तो बहुत अच्छा हो. मेरा विश्लेषण आगे भी जारी रहेगा. इसलिए नहीं कि मैं उन सबको  आन्दोलन से हटाना चाहता.



८/३...या इस आन्दोलन को नुकसान पहुंचाना चाहता. बल्कि चाहता कि अरविन्द व साथी आत्म मंथन करके इस आन्दोलन को और मजबूत करें. विश्वास जीतें.



अरविन्द व साथियों से मेरा विनम्र अनुरोध कि मुझ जैसे अदने से भी अदने आम लोगों की सलाह पे ध्यान दिया जाय.मुझे पता कि  आपलोग ध्यान देते हो... मगर "२५ जुलाई" आमरण अनशन पे मुझ सहित कई साथियों की बात न मानना एक बड़ी भूल. अब इसके लिए आत्मआलोचना जरुरी. विश्वास जितना भी जरुरी.


६ अगस्त



हमलोग खुद ही महीनों से एक स्वस्थ विकल्प के लिए बराबर बोलते रहे हैं. सो, ऐसे किसी कोई विकल्प का स्वागत करना ही है. इसमें कोई शंका नहीं.



२. मैंने खुद ही कोई एक साल पहले अरविन्द तथा साथियों से कहा था कि अच्छे लोगों को राजनीति में आना ही चाहिए. उस वक्त ये लोग अति-शुद्धतावादी बने हुए थे.



३. ईमानदारी से कोई स्वस्थ राष्ट्रीय राजनीतिक विकल्प बनता है तो हर सच्चे भारतीय को उसके साथ आना ही चाहिए. क्योंकि  फिलहाल अधिकांश दल भ्रष्ट व निहित स्वार्थी.


http://
kiranshankarpatnaik.blogspot.in/2011/04/blog-post_12.html?spref=tw

 ५. ३ अगस्त २०१२ को जिस तरीके से ‘स्वस्थ विकल्प” की घोषणा हुई, मुझे उसपे आपत्ति है. आमरण अनशन तोड़ने के लिए कोई  दूसरा उपाय सोचना चाहिए था.


६. कल ही लिखा है कि “आमरण अनशन” का ये फैसला एक बड़ी भूल थी. इसके बजाय आन्दोलन के दूसरे हथियारों का प्रयोग करना चाहिए था.


७. अनशन तोड़ने के फैसले से मैं बेहद खुश. हमारे अनमोल रत्नों की जान भ्रष्ट-बेरहम सरकार -दलों के कारण नहीं जानी चाहिए.अनशन तोडना अच्छा फैसला.


८. मगर, अनशन तोड़ने केलिए जिस ‘स्वस्थ विकल्प” की आड़ ली गयी, वो गलत. इतने बड़े फैसले के

लिए यह "मज़बूरी का मौका" पूरीतरह से गलत.टाइमिंग गलत.


९. इससे इस स्वस्थ विकल्प की घोषणा एक मजाक बन कर रह गयी. ये और बात है कि हम जैसे लाखों लोग झक मार कर भी इसके साथ.


१०. स्वस्थ राजनीतिक विकल्प की घोषणा से पहले इस मुद्दे पे पूरे देश का दौरा करना जरुरी था. अन्ना का भी दौरा इस घोषणा से पहले  होना चाहिए था.


११. जनलोकपाल मुद्दे पे एक साल से अन्ना का देशव्यापी दौरा बार-बार टल रहा. क्यों? इसका जवाब अन्ना के बजाय अन्ना टीम दे तो बेहतर.



१२. अन्ना का दौरा जनलोकपाल के लिए होना था. उसी दौरे में स्वस्थ विकल्प की पृष्ठभूमि भी बनायी जा सकती थी. जो कि नहीं हुआ. क्यों?


१३. एक बात मैं बड़ी विनम्रता से कहना चाहता कि कांग्रेस-भाजपा-सपा आदि दलों की तरह हमें भी आम जनता को “भेंड़-बकरी” नहीं समझ लेना चाहिए.


१४.मर्जी से आम जनता को यहां-वहां हांकने की प्रवृत्ति हममे विकसित हो रही है. इसीका परिणाम है ३ अगस्त की वो घोषणा. इसपे लगाम लगाना जरुरी.



१५. अभी हमें सिर्फ जनलोकपाल व चुनाव सुधार आन्दोलन को ही व्यापक बनाने के रास्ते पे चलना जरुरी है. उसके लिए हर राज्य-जिले-प्रखंड का दौरा हो.



१६. इन्हीं आंदोलनात्मक दौरों में आम जनता से आमने-सामने मौखिक-लिखित राय मांगी जाय “स्वस्थ विकल्प” के बारे में. और, संघर्ष समिति बनायी जाय.

१७. जल्दबाजी में कोई लिया कोई "अंतिम फैसला" अन्नाआन्दोलन के लिए बहुत ही नुकसानदेह साबित होगा. और, जनता का यह आन्दोलन वर्षों पीछे चला जाएगा.


१८. अभी के इस अंत में, सभी अन्ना आन्दोलनकारी अन्ना जैसी सादगी में जीवन बिताएं. खासकर अग्रणी कार्यकर्ता. इससे सबको प्रेरणा मिलेगी. 



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अन्ना आन्दोलन में मध्य वर्गीय रुझान हावी है. मध्य वर्ग में जिस तरह की रूमानी क्रांतिकारिता देखी जाती है, वो अन्ना आन्दोलन  में बड़े हद तक है. रूमानी क्रांतिकारिता से भी उग्रवादिता का बचकानापन पैदा होता है. उसी बचकानेपन  का नतीजा था "२५ जुलाई का आमरण अनशन". हालांकि उस दिन से आन्दोलन शुरू करने में कोई हर्ज नहीं था, मगर आन्दोलन के लिए हथियार दूसरे होने चाहिए थे. ये बात मैंने पहले ही कह दी है.


मध्य वर्ग में एक सुविधावादी रुझान  भी होता है, वो भी अन्ना आन्दोलन में देखा जा रहा. आराम की जिंदगी जीते हुए, सारी उपलब्ध  सुविधाओं का उपभोग करते हुए "भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन" चला रहे कुछ लोग. इस कारण भी गांवों-मजदुर इलाकों, बस्तियों में  इसका फैलाव नहीं हो पा रहा. इसपे भी हमें खास ध्यान देने की सख्त ज़रूरत है.


जब तक किसानों-मजदूरों को इसमें पूरी तरह शामिल नहीं किया जाता, तब तक यह आन्दोलन सच्चे मायने में राष्ट्रीय रूप धारण नहीं कर सकता. मजदुर तबके की एक खासियत ये है कि वे जल्द ही किसी आन्दोलन का त्याग नहीं करते. जबकि मध्य वर्ग आम तौर पे  ऐसा करता रहता. क्योंकि उसके पास अपनी निजी जिंदगी और शौकिया सामाजिक जिंदगी चलाने के अनेक सुविधावादी विकल्प  खुले रहते  
हैं. जो कि मजदूरों के पास नहीं. इसपे गंभीरता से ध्यान देना जरुरी...







11 टिप्‍पणियां:

  1. yes you are right at all above points,,but its ok we have to understand that they are human beings can make mistakes,, hope they will learn with their mistakes & will not repeat it,,Even i was not expecting "anshan" at this time,, the time was totally wrong,, & breaking the fast,, tht decision was in haste too,, but never the less lets hope something good will happen after all these wrong moves,,

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  2. एक-एक ईंट को जोड़ना होगा. हवा में जो महल था वो अब नहीं है. २०११ से २०१२ तक लंबा समय तो नहीं था फिर भी अन्ना-आन्दोलन ने एक सपना तो सामने रख ही छोड़ा. २०१४ के चक्कर में ना पड़ते तो ठीक रहता. जन-लोक-पाल की लड़ाई इमानदारी से सिर्फ सड़क से ही लड़ी जा सकती थी. संसदीय रास्ते को इजात ही इसलिए किया गया था ताकि कोई भी बे-दाग ना बचने पाए इस रस्ते से ईमानदारी कितनी बचेगी ये वक्त बताएगा.

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  3. I think, there is no dialogue among members of team while taking decisions. The team itself doesn't come to a point where all members would agree. It is looking that there are misunderstandings among members. Due to this the leaders like Arvind Kejariwal are taking such decisions, actions or giving statements in media which are not acceptable to other members. The team should resolve there own differences first.

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  4. व्यवस्था परिवर्तन एक झटके में नहीं हो सकता था. फिर भी जो झटका दिया गया वो धीरे से तो नहीं था. महाबली सत्ता की चूलें हिल गयी थी. बे-तुके संविधान और व्यवस्था की रक्षा के लिए ऐरे- गैरे नथू-खैरे तमाम विरोधों के बावजूद इकट्ठे हो गए थे. इनके इकट्ठे होने का मतलब ही ये था कि इनकी दूकान में मॉल एक ही jaisa था.......

    ...अन्ना आन्दोलन के लिए अच्छा होता तमाम सामाजिक संघठन तमाम वैचारिक मतभेदों के एक मंच हो जाते............

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  5. चुनावी नैया में सवार होना......काबिले तारीफ़ तो हरगिज़ नहीं है....मक्खन लगाने का कोई कारण मुझको नज़र नहीं आता. क्रांतियाँ सत्ता के गलियारों में जाकर नहीं हो सकती और वहाँ भगत सिंह,सुभाष और गाँधी जी की भी जरूरत नहीं. वहाँ का सिस्टम ही ऐसा है कि शपथ लेते ही दिमाग सातवें आसमान पे पहुँच जाता है. कुर्सियां भी ऐसी हैं जिनको जिनको बचाए रखने के लिए लोग अपने आप को बेच देते हैं........................................

    जन-लोक-पाल की लड़ाई अपने मुकाम तक पहुंचे इसके लिए:-

    "जन-लोक-पाल संघर्ष समीति" की बहुत जरूरत है.

    लड़ाई सडको से ख़त्म नहीं होनी चाहिए.........

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  6. जन लोकपाल आन्दोलन का प्रसार किये बिना कोई भी दल बनाना आत्मघाती होगा. और, आम जनता इसके लिए इन अन्ना टीम के दो-चार को कभी माफ नहीं करेगी.

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  7. लगता है, जनता मैं जो जागरूकता आई है, उसके बाद अगर, नॉन-कोंग्रेसी पार्टियो से अलग से बातचीत करके, बाबा रामदेव, वी के सिंह, आर एस एस और ऐसे अभी राष्ट्रिय दलों के साथ घोशानापत्र बनाने की निति लेनी चाहिए, और आन्दोलन को जमीन पे जीवित रखना चाहिए.

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  8. hello sir .....good evening
    1)aapki phone per sms mangwa ker kisi bhi subject per kisi ki bhi opinion lena mujhe bhi sahi nahi lagta.

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  9. 2) lekin aapki is baat se main sehmat nahi hun ki jo bhi insaan apne vichar rakhe ..uske ph.number ya mail se uski imandari ka pata chalaya ja sake...aaj ki duniya main log chutkiyon main apne vichar badalte hai.ph. no. aur mail id badalna kon sa badi baat hai

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