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सोमवार, 28 नवंबर 2011

आज 'भगवान "अल्लाह "जीसस " भी लाचार है . ....

तो पहला काम .-- ख़ुद को जगाना

कितना मुश्किल है खुद को बताना
कि हम एक हैं ...
और मानव धर्म एक है .....
और
सारे भारतीय ।मेरे भाई बहन हैं ...

ये प्रतिज्ञा सिर्फ
पाठशाला का एक नियम बनाना .....

नर्सरी में दाखिला लिया ..
पापा फॉर्म भर रहे थे ..
.

पहला सवाल था .
जाति , धर्म कौन सा ?
हिन्दू ....लिंगायत .......

पापा ...ये धर्म क्या होता है ..?
मेरा सवाल था ...
.

बेटा ..तुम नहीं समझोगी ..
बहुत छोटी हो .....

"आया " ने मेरी ऊँगली थामा ....
आया से मैंने पूछा .....आपका धर्म क्या है . ....?
मुस्लिम ............

ये था पहला पाठ मेरे बचपन का .....
कितना आसान हो गया है ....
खुद को बताना ...


मेरे दादा ..मेरे दादा के दादा ..उनके दादा के दादा
सभी ने यही सीखा था ..
हम सब एक है ...
मानव धर्म एक है ...


कोई तो मेरे सवालो का जवाब दो ..........?
'रामायण कहा से आया ..?
कुरान कहा से आया ..?
महाभारत कहा से आया ....?
और ये बायबिल ॥कहा से आयी ...?


कितना आसान हो गया है ..खुद को बताना
आज 'भगवान "अल्लाह "जीसस " भी लाचार है . ....
उनके नाम पर ही ॥एक दूसरे को मरोड़ रहे हैं ....

कैंडल भी बहुत जलाए ......
टी वी पर नाम भी फैलाये ....
कि ..हम लड़ेगे ....हम लड़ेगे .....
दूसरी सुबह ने देखा ...
वो खुद ही लड़ रहे है .....


मै "मारता "...तू मुस्लिम ....वो बिहारी .....
आसान हो गया है खुदको बताना

सिर्फ "दिल " से सोचो ....
"भारत मेरा देश है ...
और "भारत मेरा घर है "...
..... हम सब भाई बहन है ...

तो कैंडल भी न हो ...
लिस्ट भी न हो
ख़ुद को जगाओ .......
ख़ुद को जगाओ ..
....

तो आसान नहीं होगा ख़ुद को जगाना ......
तो ...पहला काम ..
ख़ुद को जगाना ......
ख़ुद को जगाना ......






नंदिनी पाटिल

क्षमा करें गाँधी हमें ....

गाँधी की आखे मुझे घूर रही थी ...
जब मै नए सदी का हवाला दे रही थी.....

किताब बंद किया अपने नए विचारो और आखो के साथ ...
विचार मेरे गुलाम है ,नए सदी के हाथ .....

नए सदी का पाठ है - आतंकवाद का ...
चरखा यहाँ चलता है,घोटाले घोटालो का.....

धूर्तता की जीत है ,नैतिकता की हार ,
लाचारी की चमडी है ,करो जयजयकार....


सत्ता की है आरती यहाँ, पूजा है कुर्सी की....
प्रसाद है पैसोका , आशीर्वाद मोर्चे , हड़तालों की....


पंडित मुल्ला दो हथियार यहाँ, पाठ यहाँ पर दंगल का......
चरखा यहाँ चलता है , घोटाले घोटालो का.......


कदम चूमती जीत यहाँ ,नई सदी के ..कौरवों की ....
इज्ज़त यहाँ लुटती है, मूल्य और मर्यादा की .....


नई सदी में चिंतन है, शपथ कैसे ले झूठ की ...
नई सदी में मनन है, प्रतिज्ञा कैसे ले फूट की ..


शिकवा करे किससे ? जब बाड़ खाए खेत को ...
आज़ाद भारत में रोज देखते ज़िंदा लाश, ज़िंदा मौत को ...


क्षमा करें गाँधी हमें ....
नई सदी में इंतज़ार है आपका ...
चरखा यहाँ चल रहा है घोटाले- घोटालो का..


-- नंदिनी पाटिल