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गुरुवार, 29 सितंबर 2011

प्रकाश गति को पछाड़ता न्यूट्रिनो ?

न्यूट्रिनो की चुनौती

टाइम मशीन का निर्माण संभव ?

आइंस्टाइन के अनुसार, इस ब्रह्मांड में प्रकाश की गति सबसे तेज है। इससे तेज कुछ भी नहीं है। लेकिन पिछले दिनों वैज्ञानिकों ने न्यूट्रिनो नामक एक अणु की खोज की थी। और अब पता चला है कि इसकी गति प्रकाश की गति से कहीं अधिक है। प्रकाश की गति प्रति सेकेंड 299,992,458 मीटर है। जबकि न्यूट्रिनो की गति प्रति सेकेंड 300,006,000 मीटर (3 लाख 6 किमी) है। इस दूरी को तय करने में प्रकाश को एक सेकेंड के 10,000 वें भाग का 23 वां हिस्सा का समय लगता है। लेकिन न्यूट्रिनो को जो समय लगता है वह एक सेकेंड के 100,000,000 भाग का छठा हिस्सा लगता है।


इसके अलावा अब तक जो माना जाता रहा है कि फूटोन या प्रकाश कण का कोई भार नहीं होता है। लेकिन नए शोध से पता चला है कि न्यूट्रिनो का भार भी है। ऐसे में यह नया शोध आइंस्टाइन के सापेक्षता के सिद्धांत से मेल नहीं खाता। यही नहीं, माना जा रहा है कि वैज्ञानिक ब्लैक होल और बिग बैंग के बाद पृथ्वी के निर्माण के रहस्य को जानने के लिए जो शोध कर रहे हैं, उसमें यह मील का पत्थर साबित हो सकता है। इसी के साथ यह भी माना जा रहा है कि न्यूट्रिनो से संबंधित नए निष्कर्ष के कारण विश्व पर्यावरण के नियमों की व्याख्या के तमाम सिद्धांत और भौतिकशास्त्र के सूत्र पर अब नए सिरे से सोच-विचार की जरूरत है।


आइंस्टाइन के सापेक्षता के सिद्धांत के अनुसार इस ब्रह्मांड में प्रकाश की गति के आगे कोई भी गति टिकती नहीं है। यानि ब्रह्मांड में प्रकाश की ‍गति सबसे अधिक द्रुत है। इस आधार पर आइंस्टाअन ने जो सूत्र निकाले थे यह E = MC2 है। यह सिद्धांत सापेक्षता के सिद्धांत को सिद्ध करता है। भौतिकशास्त्र के बहुत सारे सूत्र इसी सिद्धांत पर आधारित हैं। न्यूट्रिनो के विचित्र चरित्र की खोज के बाद आइंस्टाइन के इस सूत्र पर सवालिया निशान खड़ा हो गया है। हालांकि इस सिद्धांत को अभी खारिज नहीं किया गया है, लेकिन इसे सटीक मानने से वैज्ञानिकों को गुरेज जरूर है। फिलहाल सर्न यानि काउंसिल यूरोपियन रिसर्च न्यूक्लियर के वैज्ञानिक निश्चिंत हैं कि न्यूट्रिनो की गति से संबंधित निष्कर्ष में किसी तरह की यांत्रिक गड़बड़ी या गणना की त्रुटि नहीं है। इसी कारण सहज वैज्ञानिक नियम के तहत इस निष्कर्ष को नेचर पत्रिका के जरिए सर्न के वैज्ञानिकों ने आगे व्यापक शोध के लिए जारी कर दिया है।

आखिर यह क्या बला है न्यूट्रिनो, जिस पर इतना शोर मचा हुआ है। न्यूट्रिनो एक बुनियादी अणु है। माना जाता है कि इसी बुनियादी अणु से ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ है। लेकिन इसके बारे में अभी भी बहुत सारे रहस्यों का खुलासा नहीं हो पाया है। न्यूट्रिनो की दुनिया एक रहस्यमय दुनिया है। इसके अणुओं की पहचान बहुत ही मुश्किल काम है। परमाणु कण इलेक्ट्रॉन का भार एक मिलीग्राम के 1,000,000,000,000,000,000,000,000 (एक के पीछे 24 शून्य) भाग का एक भाग होता है। जबकि न्यूट्रिनो उस इलेक्ट्रॉन की तुलना में पांच लाख गुना हल्का होता है। पहले माना जाता था कि यह भारहीन होता है। लेकिन हाल के शोध से पता चला है कि इसका भी भार होता है, लेकिन बहुत ही कम।


1930 में एक ऑस्ट्रियाई वैज्ञानिक होल्फगॉन्ग पॉली ने न्यूट्रिनो नामक एक घोस्ट पार्टिकल्स यानि भूतिया अणु के अस्तित्व का अनुमान लगाया था। इसकी गति इतनी तेज होती है कि हर पल इसके अरबों-खरबों कण हमारे शरीर को आर-पार करते हुए ब्रह्मांड की सैर पर निकल जाते हैं। इनके लिए हमारे शरीर का मानो कोई अस्तित्व ही न हो। हर पल ऐसा खरबों (लगभग पांच खरब) न्यूट्रिनो कण हमारे शरीर के प्रतिवर्ग सेंटीमीटर हिस्से में प्रवेश कर पल भर में शरीर के दूसरे छोर से निकल जाया करते हैं। ये तीर इतने सूक्ष्म होते हैं और इसका इतना अधिक वेग होता है कि हमें इनके आने-जाने का कुछ पता ही नहीं चलता। इसीलिए इसे गॉड पार्टिकल्स या ईश्वर अणु भी कहा जाता है। बहरहाल, इसे जानने के प्रयास में दुनिया भर के वैज्ञानिक लगे हुए हैं।

हाल के शोध

सर्न यानि काउंसिल यूरोपियन रिसर्च न्यूक्लियर के वैज्ञानिकों ने 23 सितंबर को इसकी गति का जो निष्कर्ष निकाला है, वह बड़ा चौंकानेवाला था। सर्न के वैज्ञानिकों द्वारा स्वीटजरलैंड में जेनेवा के करीब भूगर्भ में न्यूट्रिनो नामक अणु को छोड़ा गया इस "भूतिया अणु" ने 730 किमी का लंबा रास्ता तय किया और इटली के ग्रान सासो पहाड़ी के एक शोध केंद्र तक प्रकाश की गति की तुलना में 60 नैनो सेकेंड से भी कम समय में पहुंचा। हालांकि सर्न के विख्यात ब्रिटिश वैज्ञानिक स्टीफेन हॉकिंग का मानना है कि अभी इसमें और भी शोध होने हैं। इसीलिए आइंस्टाइन के शोध को एकदम से खारिज नहीं किया जा सकता, लेकिन जहां तक गति का सवाल है उस पर सवालिया निशान जरूर खड़ा हो गया है। इंग्लैंड के भौतिकशास्त्र के संस्थान रॉयल सोसाइटी के पूर्व निदेशक वैज्ञानिक सर मार्टिन रिस का कहना है कि शोध के निष्कर्ष से सारे वैज्ञानिक भौंचक हैं। इसीलिए सर्न के वैज्ञानिकों ने हर संभावित तरीके से इस निष्कर्ष की जांच की कि इस निष्कर्ष के पीछे कोई यांत्रिक त्रुटि तो नहीं रह गयी है। लेकिन ऐसा किसी त्रुटि का अभी तक पता नहीं चल पाया है। बहरहाल, अभी इस पर और भी शोध जारी है। अमेरिका और जापान भी इसमें अपनी तरह से शोध कर रहा है।

लंबे समय से भारत में भी न्यूट्रिनो को लेकर शोध कार्य चल रहे हैं। इस शोध का सेहरा भारत के सिर बंध सकता था। लेकिन यह बड़े दुख की बात है कि ऐसा नहीं हुआ। मुंबई स्थित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर) के वैज्ञानिक नवकुमार मंडल पिछले दिनों कोलकाता आए हुए थे। उस समय उन्होंने दावा किया था कि इसकी शिनाख्त सबसे पहले भारत के कर्नाटक स्थित कोलार के सोने की खदान में ही हुई थी। पिछले बीस वर्षों से केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय के कारण इंडिया बेस्ड न्यूट्रिनो ऑब्जवेटरी (आईएनओ) का कार्यान्वयन अधर में लटका हुआ है। भारत सरकार की अदूरदर्शिता तथा लापरवाही की वजह से न्यूट्रिनो की शिनाख्त के शोधकार्य में अगुवा रहने के बावजूद भारत पिछड़ गया। (इस बारे में इसी ब्लॉग में मेरा एक अन्य आलेख देखें.)

1950 के दशक में ही महान वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा ने अपने अ‍धीनस्थ शोधकर्ता वीवी श्रीकांतन को कोलार खदान के नीचे शोधकार्य के लिए भेजा था। जमीन के नीचे विभिन्न गहराइयों में म्युअन नामक कणों की उपस्थिति की मात्रा कितनी है, यही मापने का जिम्मा श्रीकांतन को सौंपा गया था। इस दौरान श्रीकांतन तथा उनके साथियों को इस बात का आभास हुआ कि जमीन के नीचे कई किलो मीटर की गरहाई न्यूट्रिनो पर शोध के लिए उत्कृष्ट स्थान है। 1965 में वहां न्यूट्रिनो पर अनुसंधान शुरू हुआ। श्रीकांतन, एकजीके मेनन और वीएस नरसिंह्म जैसे भारतीय वैज्ञानिकों के साथ ओसाका विश्वविद्यालय और डरहम विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक भी शामिल हुए। ब्रह्मांड में चक्कर लगानेवाले सूक्ष्म न्यूट्रिनो कणों को पहली बार यहीं पहचाना गया।

अगर न्यूट्रिनो का निष्कर्ष सटीक निकला तो यह मामला बहुत कुछ विज्ञान कथा के टाइम मशीन जैसा होगा। कैसे? आइए देखें। कोलकाता की वैज्ञानिक तापसी घोष जो यहां वैरिएबल एनर्जी साइक्लोट्रोन सेंटर में कार्यरत हैं, कहती हैं कि गोली चलती है और जब वह हमारे शरीर को भेदती है तो हमें दर्द का अनुभव होता है। हम सब जानते हैं कि गति ऊर्जा पैदा करता है। जाहिर है गोली चलने पर उसमें गति पैदा होती है। एक वेग के साथ वह आगे बढ़ता है। हमारे शरीर को भेदते समय गोली उस ऊर्जा को हमारे शरीर में जमा कर देती है। इससे शरीर को दर्द की अनुभूति होती है। लेकिन चूंकि न्यूट्रिनो की गति प्रकाश की गति से भी अधिक है और इसी कारण यह तेज गति से हमारे शरीर को आसानी से आर-पार हो जाती है। ऐसे होते समय हमारे शरीर में जरा भी ऊर्जा जमा नहीं होती है। अंत: हर क्षण लाखों-करोड़ों न्यूट्रिनो हमारे शरीर को भेदते है, लेकिन हमें इसका एहसास नहीं होता।

घोष कहती हैं कि बात महज इतनी-सी नहीं है। नए शोध का निष्कर्ष अगर स्थापित हो जाता है तो यह निष्कर्ष कार्य और कारण के सिद्धांत को भी पलट कर रख देगा। अभी तक माना जाता था पहले कारण होता है और उसके बिना पर ही कोई कार्य होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार इस ब्रह्मांड में न्यूट्रिनो प्रकाश की गति के लिए चुनौती है। उनका कहना है कि अगर प्रकाश की गति सबसे तेज नहीं है तो यह पूरा मामला पलट जाएगा। कार्य-कारण का संबंध टूट जाएगा। पहले कार्य होगा और तब कारण होगा। पहले मौत होगी, इसके बाद बंदूक से गोली चलेगी। आया कुछ समझ में? यह मामला बड़ा जटिल है। सर्न के वैज्ञानिकों की माने तो आज का तथ्य हम बीते कल में भेज सकते हैं। हो गया न भेजा फ्राई! विज्ञान कथा में टाइम मशीन का जिक्र है, जिसे हम सबने कभी न कभी पढ़ा है। विज्ञान कथा की यह अवधारणा क्या अब सच होनेवाली है! (फ़िलहाल समाप्त)

6 टिप्‍पणियां:

  1. prakash or newtrino se bhi tej gati man ki hi,ye hamare maharishi,vidvan hazaro varso pahale hi bata chuke hi,vese prakash se tez gati wale newtrino ki jaankari ke lie thanx'''

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  2. जी आपका भी शुक्रिया. लेकिन, एक बात जरुर कहना चाहूँगा कि मन भले ही बहुत तेज चलता हो, मगर वो उतनी ही दूर जा सकता है, जितनी दूर की हमारे दिमाग को जानकारी हो. यानि, कोई भी शुद्ध कल्पना करना हमारे दिमाग के वश की बात नहीं.

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    1. सुदूर पदार्थ, स्थान की मन में कल्पना करके फिर "मन की गति तेज़" होने का ढोल पीट कर अपनी पीठ थपथपाना कोई भारतीयों से सीखे ... चाहे जिस तेज़ गति से कोई कल्पना कर ले, रहेगी तो कल्पना , स्थूल यथार्थ शरीर को प्रकाश से भी तेज़ गति से कहीं भेज कर कोई भारतीय दिखाए ...

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    2. आइंस्टीन सही साबित होंगे इन्होने समय को चौथी विमा बताया था। और विमा की दिशा दोनों तरफ होती है। अंकित जी भारतीयों ने बहुत कुछ दिया है विज्ञानं को, सही मायनो में भारतीय ही विज्ञानं के जनक है मगर मुगलो के आक्रमण के बाद हम विज्ञानं के क्षेत्र में पिछड़ गए। सबसे पहला शल्य चिकित्सक भारतीय थे "सुश्रुत'' father of surgery

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  3. this time I'm at USA .reading all this message, comment's, I'm very happy to say that one day India will enter in their era, time to comes in shorter when everyone proudly says that we are Indian's.

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  4. मैं आज से करीब 30-35 वर्ष पहले एक पुस्तक के पढ़ा था कि प्रकश से भी तीब्र गतिमान यदि कोई चीज है तो उसका नाम है "टैकियन"
    टैंकियन" की गति के समक्ष वर्तमान समय बिलकुल ठहर ही नहीं जाता बल्कि उसकी गति से होने वाले कार्य "ऋण-समय" में ही पूर्णतः सम्पादित हो जाते हैं; अर्थात कर्ता द्वारा किसी कार्य करने के पहल से पूर्व ही वो कार्य पूर्ण हो चुका होता है।

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