मई दिवस पर एक जनगीत
दुनिया बदली
सत्ता बदली
बदले गांव जवार
पर गरीब का हाल न बदला
आई गई सरकार
तो भैया
सोचो फिर एक बार
मिटेगा कैसे अत्याचार
कैसी तरक्की किसकी तरक्की
कौन हुआ खुशहाल
सौ में चालीस अब भी भूखे
और साठ बेकार
फैक्ट्रियो में ताले लग गये
देते जान किसान
कारों के पेट्रोल की खातिर
खाली हो गई थाल
तो भैया
सोचो फिर एक बार
रहेगा कब तक ऐसा हाल
मिटेगा कैसे अत्याचार
टीवी सस्ती सस्ता फ़्रिज है
सस्ती हो गई कार
रंग बिरंगे सामानों से
अटा पड़ा बाजार
फिर रोटी क्यूं मंहगी इतनी
फिर क्यूं मंहगी दाल
उनकी किस्मत में एसी है
अपना हाल बेहाल
तो भैया
सोचो फिर एक बार
चलेगा कब तक ये व्यापार
मिटेगा कैसे अत्याचार
लाखों के पैकेज के पीछे
जीवन बना मशीन
रूपये पैसे की दरिया में
डूबे ख्वाब हसीन
जिसको देखो भाग रहा है
सिर पर रखे पांव
चेहरे पर तो मुस्काने हैं
दिल में गहरे घाव
तो भैया
सोचो फिर एक बार
भरेगा कैसे दिल का घाव
मिटेगा कैसे अत्याचार
धर्म जाति की गहरी खाई
गहराती ही जाये
बिजली पानी छीन के हमसे
रामसेतु बनवायें
जनता की इन सरकारों से
अब तो राम बचाये
क्यूं ना इनकी कब्र खोदकर
अपना राज बनायें
तो भैया
सोचो फिर एक बार
बनेगा कैसे अपना राज
मिटेगा कैसे अत्याचार

yah kavita bahut badi hai mugha choti chahiya
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