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शुक्रवार, 3 जून 2011

रिजवान हत्याकांड: शाहरुख की दगाबाजी

रिजवान हत्याकांड: शाहरुख की दगाबाजी

विशेष संवाददाता

कोलकाता : रिजवान हत्याकांड के मुख्य अभियुक्त टोडी परिवार की होजियरी कंपनी के साथ हुए करार को स्थगित रखने के शाहरूख खान की घोषणा से कोलकाता निवासी एक हद तक प्रसन्न हैं। इसे भी हत्यारों की हार और जनता की जीत के रूप में देखा जा रहा है। कोलकाता के लाखों लोग शाहरूख को शाबाशी दे रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि जनसमाचार के पिछले अंक में इस पर एक लंबी खबर प्रकाशित की गयी थी। जिसमें रिजवानुर रहमान हत्याकांड और इस षडयंत्र में अशोक-प्रदीप टोडियों के हाथ होने के बारे में विस्तार से बातया गया था। साथ ही, शाहरूख तथा नाइट राइडर्स की लोकप्रियता को भुनाने की टोडियों की शातिराना चाल का भी उल्लेख किया गया था। यहां यह भी बताना जरूरी है कि कुख्यात टोडियों ने मशहूर क्रिकेटर सौरव गांगुली के परिवार का दुरुपयोग करते हुए शाहरूख के साथ संपर्क साधा और अपने उत्पाद के प्रमोशन के लिए उसके साथ 35 करोड़ रु. का एक तीन वर्षीय विज्ञापन समझौता किया। सौरव गांगुली का बड़ा भाई स्नेहाशीष गांगुली का टोडियों के साथ बड़ा पुराना संबंध है। इसी स्नेहाशीष के जरिए टोडियों ने सौरव और शाहरूख को फांसने का काम किया। स्नेहाशीष बंगाल क्रिकेट बोर्ड कैब के साथ भी जुड़ा हुआ है। स्नेहाशीष ने ही कोलकाता के तत्कलीन कुख्यात पुलिस आयुक्त प्रसून मुखर्जी से टोडियों का परिचय करवाया था। यह परिचय बाद में रिजवान हत्याकांड के षडयंत्र में बड़ा काम आया। टोडियों को बचाने में प्रसून मुखर्जी ने पुलिस विभाग की बची-खुची प्रतिष्ठा को भी दांव पर लगा दी थी।

बहरहाल, शाहरूख और र्टोडियों के बीच हुए समझौते से असंख्य जागरूक और संवेदशील नागरिक नाराज हुए। रिजवान की मां किश्वरजहां के साथ अनेक लोगों ने धर्मतला में धरना भी दिया। टीपू सुल्तान मसजिद के इमाम ने शाहरूख की फिल्मों के बहिष्कार का फतवा भी जारी किया। पोस्टर फाड़े गए। शाहरूख और टोडियों के जरखरीद मीडिया ने इस खबर को दबाने का भरसक प्रयास किया। लेकिन मीडिया अभी भी इतना शक्तिशाली नहीं हुआ है कि जनता की बुलंद आवाज का गला घोंट सके।

जनता की नब्ज पहचान कर शाहरूख ने अपने प्रवक्ता के जरिए टोडियों के साथ हुए करार को स्थगित रखने की घोषणा की। यानि जब तक अशोक टोडी, प्रदीप टोडी और प्रियंका के मामा अनिल सरावगी बाइज्जत बरी नहीं हो जाते, तब तक करार स्थगित ही रहेगा।

जनता की आवाज पर शाहरूख का यह फैसला काबिले तारीफ है, मगर सवाल यह है कि इतने बड़े करार के पहले शाहरूख ने टोडियों के रिकॉर्ड की जांच क्यों नहीं करवायी। कोई भी करोड़ों रुपए की हड्डी डाल दे तो क्या शाहरूख (तथा अन्य तथाकथित स्टार) बिना सोचे-समझे उस पर टूट पड़ते हैं? अगर ऐसा नहीं है, तब फिर जानबूझ कर शाहरूख ने कुख्यात टोडियों के 35 करोड़ भला किस नीयत से स्वीकार किए? शाहरूख के साथ-साथ सौरव गांगुली की नीयत पर भी सवाल उठना लाजिमी है। सौरव को तो सब कुछ पता है, भले ही टोडियों से उसका निजी-राजनीतिक रिश्ता हो।

बहरहाल, शाहरूख की घोषणा के बावजूद विभिन्न चैनलों में टोडियों के विज्ञापनों में शाहरूख, सौरव, अगरकर आदि हंसते-मुस्कुराते दिखायी दे रहे हैं। शाहरूख ने अगर सचमुच नैतिकता और अपने विवेक की सुनकर उक्त फैसला किया है तो उसे चाहिए कि ऐसे तमाम विज्ञापनों को भी तुरंत रोक दिया जाए। (शाहरुख पर एक किश्त और भी)

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