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रविवार, 12 जून 2011

जन-आदोलन की जीत को बाबा की हार बताने पर तुली कांग्रेस!

जन-आदोलन की जीत को बाबा की हार बताने पर तुली कांग्रेस!

यह बाबा की हार नहीं, जन-आन्दोलन की जीत है. इसे बाबा की हार बताकर यह भ्रष्ट और तानाशाह कांग्रेस सरकार जन-आन्दोलन को कमजोर करने की कोशिश में है. ध्यान रहे, यह आन्दोलन न बाबा का है, न अन्ना का है, न किसी दल विशेष का. यह जनता का आन्दोलन है. अन्ना और बाबा इस आन्दोलन के एक नेता हैं. कुछ लोगों को यह गलतफहमी है कि यह किसी व्यक्ति विशेष का आन्दोलन है.


अन्ना और बाबा भी इस आन्दोलन को नेतृत्व देने तभी आये, जब भ्रष्टाचार के विरुद्ध आम लोगों का रोष उग्र से उग्रतर होने लगा और विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर कोई बड़ा आन्दोलन नहीं चलाया. अन्ना ने देशव्यापी आन्दोलन शुरू किया और उन्हें तुरंत-फुरंत एक जीत मिल गयी. ऐसी जीत बाबा को नहीं मिली. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वे विफल हो गए, जैसा कि कुछ दलाल चैनल और दलाल अखबार बताने के प्रयास में हैं.


बाबा के आन्दोलन का असर साफ़ देखा जा रहा है. कांग्रेस सरकार को मजबूरी में ही सही, काले धन के खिलाफ थोड़ी-बहुत कार्रवाई करनी पड़ रही है. बाबा की अधिकांश मांगें दिखावे के लिए ही सही इस सरकार ने मान ली है. और जब तक जन-आन्दोलन चलता रहेगा, सरकार को कार्रवाई करते रहना पड़ेगा. यह सच है कि बाबा को तुरंत वैसी सफलता नहीं मिल पायी, जैसा कि अन्ना को मिली. तो इसकी वजह यह है कि बाबा न तो कांग्रेस सरकार की तरह महाधूर्त हैं, और न ही वे अन्ना की तरह मंजे हुए पुराने आन्दोलनकारी हैं. इसके अलावा उनके सलाहकार भी उतने परिपक्व नहीं हैं. इसका अर्थ यह नहीं कि उनका मुद्दा पिट गया. बल्कि उनके मुद्दे को एक नयी जान मिली है. लोगों में इस भ्रष्ट और तानाशाह सरकार के खिलाफ गुस्से में इजाफा हुआ है. जनता भ्रष्टाचार के खिलाफ और अधिक जुझारू दिख रही है. इसे क्या हार कहते हैं?


किसी भी आन्दोलन में कभी पीछे भी हटना पड़ता है. कभी जान-बूझकर तो कभी मजबूरन. युद्ध की भी यही रणनीति है. इसका मतलब यह हुआ कि हम और अधिक मजबूती के साथ हमला करेंगे. बाबा भी ऐसा ही करेंगे. उनका भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन और ज्यादा शक्ति के साथ चलेगा. और अधिक सुचारू तथा परिपक्व बनेगा. आम लोगों को ऐसी ही उम्मीद है.


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