घोड़े की सवारी से जो काम न हो सका, वो काम “साइकिल” कर दिखाएगी !!
विशेष संवाददाता
”मुहर लगेगी हाथी पे, वरना गोली चलेगी छाती पे” ! बुंदेलखंड के जंगलों-गांवों में ये “नारा” लगाने वाला खुंखार डाकू ददुआ का बेटा वीर सिंह इन दिनों चुनाव लड़ रहा.
ददुआ अब मारा जा चुका है. पिछले चुनाव में उसने दल बदल करके हाथी के बजाय साइकिल की सवारी शुरू की. साइकिल का टायर पंक्चर हुआ और माया की पुलिस ने ददुआ को मार गिराया.
तीन दशक तक ददुआ का आतंक और रोबिन्हुडगिरी चलती रही थी. अनेक किस्से-कहानियाँ सुनी जाती हैं उसकी. उसके बल पे अनेक लोग नेता बने, और नेता बनके “डाकू” बने. यानि जनता को लूटने के काम किये. कम से कम दस विधान सभा सीटें ददुआ का “कार्य क्षेत्र" रहीं.
ददुआ ने अपना साम्राज्य बनाये रखने के लिए “समाज सेवा” के अनेक काम किये, जो कि नेता से डाकू बने नेताओं-मंत्रियों ने नहीं किया. ये है बुनियादी फर्क जंगल के डाकू और नेता में.
ददुआ पुत्र ने देखा कि उसके पिता का नाम लेकर अनेक लोग नेता-मंत्री बन गए, तो वो क्यों नहीं. बदनामी के डर से किसी दल ने उसे टिकट देना नहीं चाहा तो वह सदल-बल चढ बैठा मुलायम के दफ्तर. आखिरकार उसे टिकट मिल ही गया. (कहां हो अखिलेश? आपने तो कहा था कि दागदार लोगों को आपके यहां टिकट नहीं मिलती !!) सपा वालों का कहना है कि वीर सिंह डाकू नहीं. उसे उसके पिता के अपराध की सज़ा क्यों मिले ? लेकिन, वीर पे भी अपहरण, हत्या, और फिरौती के कोई नौ मामले तो चल ही रहे हैं.
बहरहाल, उत्तर प्रदेश में अनेक उम्मीदवार कुछ इसी तरह के हैं. ऐसे में अकेले ददुआ -पुत्र को “दोष” देना ठीक नहीं. सभी दलों में हैं अनेक ददुआ-पुत्र या खुद ददुआ.
ददुआ-पुत्र का कहना है कि वो नेता बनके समाज सेवा करेगा. गरीबों की भलाई के काम करेगा. अब्दी अच्छी बात. जो काम नेता से डाकू बने लोग नहीं कर सके, वो काम अगर डाकू-संतान और खुद भी एक अपराधी नेता बनके कर सके तो देश का कल्याण !! लेकिन...... ???? एक बड़ा सवालिया निशान..?
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सोमवार, 20 फ़रवरी 2012
“घुडसवार” ददुआ के पुत्र वीर सिंह ने शुरू की “साइकिल यात्रा”
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किरन जी, आपका यह लेख बहुत ही अच्छा है और मेरे लिये तो यह अत्यंत चौंकाने वाली जानकारी है कि ददुआ और उसका बेटा भी चुनाव में सम्मिलित रहे हैं। परंतु क्या चुनाव आयोग इस पर रोक नहीं लगा सकता??
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