भारत के स्वदेशी कितने स्वदेशी, कितने विदेशी और कितने इटैलियन !
इस करारनामे से यह साफ हो गया है कि उत्पादन और विनिर्माण में दोनों कंपनियां साथ-साथ रहेंगी। सिर्फ वितरण के क्षेत्र में दोनों अलग हो जाएंगी।
इन दोनों कंपनियों की संयुक्त घोषणा से यह साफ हो गया है कि भारत के टाटा, अंबानी, बिड़ला आदि महासेठ घराने असल में विदेशी कंपनियों के भारतीय फ्रंट हैं। यही वजह है कि कथित भारतीय महासेठ घरानों का एफडीआई और एफआईआई आदि विदेशी पूंजीनिवेश के बल पर कारोबार चल रहा है। ये घराने लगातार इस बात पर जोर दे रहे हैं कि विदेशी पूंजीनिवेश और विदेशी कंपनियों को भारत लाया जाए।
साफ है नैनो कार का विनिर्माण फिएट ने ही किया है। टाटा उत्पादन के नाम पर जहां-जहां कृषि भूमि या सर्वजनिक भूमि लेने की कोशिश की गयी है या ले ली गयी है वह दरअसल, मूलत: फिएट कंपनी के लिए ही है।
विशेष संवाददाता
भारत के स्वदेशी कहे जानेवाले उद्योगपति टाटा समूह की हैसियत कितनी स्वदेशी है और कितनी स्वतंत्र, इसका पर्दाफाश करनेवाले तथ्य सामने आए हैं। कहा जाता है कि टाटा मोटर्स ने पहली स्वदेशी कारें भारत को दी हैं, लेकिन यह तथ्य कम लोगों को पता है कि टाटा समूह कार उत्पादन, वितरण और मार्केटिंग के मामलों में इटली की कंपनी के फ्रंट संगठन के रूप में काम करता रहा है।
भारत के स्वदेशी कहे जानेवाले उद्योगपति टाटा समूह की हैसियत कितनी स्वदेशी है और कितनी स्वतंत्र, इसका पर्दाफाश करनेवाले तथ्य सामने आए हैं। कहा जाता है कि टाटा मोटर्स ने पहली स्वदेशी कारें भारत को दी हैं, लेकिन यह तथ्य कम लोगों को पता है कि टाटा समूह कार उत्पादन, वितरण और मार्केटिंग के मामलों में इटली की कंपनी के फ्रंट संगठन के रूप में काम करता रहा है।
फिएट के सी ई ओ सर्जियो मर्शियोंने |
मोटर कारों के निर्माण
और विपण्ण के मामले में फिएट दुनिया की पांच सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है। एक
करारनामे के तहत टाटा मोटर्स की रंजनगांव स्थित फैक्टरी में टाटा ग्रुप की सारी
कारों का निर्माण मूलत: फिएट कंपनी करती रही है। इंजन सहित अनेक महत्वपूर्ण पुरजों
को इटली से आयात किया जाता है। रंजनगांव की टाटा फैक्टरी बुनियादी तौर पर ‘एसंबलिंग शॉप’ है, जहां
इटालियन कंपनी के बनाये गए इंजन और पुरजों को जोड़कर अलग-अलग मार्का कर बनायी जाती
हैं। टाटा मोटर्स और फिएट के बीच संबंध ठीक वैसा ही है जैसा कि मारूति और जापानी
सुजुकी का। मूल सामग्री विदेशी कंपनी की होती है, केवल लेबल भारतीय कंपनी का होता
है।
जो तथ्य सामने आए
हैं, उनसे पता चलता है टाटा कारों को पूरी तरह से भारतीय बताना जनता को गुमराह
करना है। गौरतलब है कि टाटा ग्रुप मोटर कारों के नाम पर जो मुनाफा कमाता है, उसका
अधिकांश भाग फिएट को चला जाता है। यानि भारत में हो रहे इस मुनाफे से अधिकांश पूंजी
निर्माण इटली में होता है। अभी-अभी एक अंग्रेजी दैनिक ने हेडिंग लगायी- फिएट
फाइनली सेज, बाय-बाय टू टाटा। यह खबर भी लोगों को गुमराह करने के लिए चलायी गयी
है। दरअसल, इस खबर के जरिए यह बताने की कोशिश की जा रही है कि टाटा ग्रुप एक
स्वतंत्र और स्वदेशी कंपनी थी, और आगे भी रहेगी। बीच में कुछ दिनों के लिए फिएट के
साथ उसका व्यापारिक संबंध था, जो कि अब खत्म हो रहा है। जबकि यह सच नहीं है। टाटा
और फिएट के बीच हुए करारनामे के अनुसार फिएट कंपनी टाटा मोटर्स की कारों का
निर्माण करती रहेगी और बाजार में फिएट कंपनी अपने नाम की कारों को भी उतारेगी। इस
तरह फिएट कंपनी भारत से दोहरा मुनाफा ले जाएगी और पूंजी निर्माण होगा इटली में।
इस करारनामे से यह साफ हो गया है कि उत्पादन और विनिर्माण में दोनों कंपनियां साथ-साथ रहेंगी। सिर्फ वितरण के क्षेत्र में दोनों अलग हो जाएंगी।
इन दोनों कंपनियों की संयुक्त घोषणा से यह साफ हो गया है कि भारत के टाटा, अंबानी, बिड़ला आदि महासेठ घराने असल में विदेशी कंपनियों के भारतीय फ्रंट हैं। यही वजह है कि कथित भारतीय महासेठ घरानों का एफडीआई और एफआईआई आदि विदेशी पूंजीनिवेश के बल पर कारोबार चल रहा है। ये घराने लगातार इस बात पर जोर दे रहे हैं कि विदेशी पूंजीनिवेश और विदेशी कंपनियों को भारत लाया जाए।
साफ है नैनो कार का विनिर्माण फिएट ने ही किया है। टाटा उत्पादन के नाम पर जहां-जहां कृषि भूमि या सर्वजनिक भूमि लेने की कोशिश की गयी है या ले ली गयी है वह दरअसल, मूलत: फिएट कंपनी के लिए ही है।
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