इन संघियों ने जेपी आन्दोलन के सारतत्व को न सिर्फ नष्ट किया, बल्कि उसके
खिलाफ भी लगातार काम करते गए. इसीलिए इनके शासन में इतना भ्रष्टाचार.
२. जेपी आन्दोलन में इन्हें किसी मजबूरी में नहीं लाये थे जयप्रकाश. बल्कि "कांग्रेस-विरोधी" हवा को बल देने के लिए लाया गया था.
३..इसे संघियों ने अपनी शक्ति मान ली. और, महंगाई तथा भ्रष्टाचार और तानाशाही के खिलाफ जेपी आन्दोलन पे कब्जा करना शुरू कर दिया.
४. जनतापार्टी बनने के बाद तो संघियों ने समझ लिया कि इनका ही शासन आ गया.सो, मनमानी चलाने लगे.सबसे पहले बिहार-यूपी आदि में जमके दंगे करवाए.
५. खुद सरसंघचालक बालासाहेब देवरस ही इन दंगों के लिए ज़मीन तैयार करते रहे.
उस समय हमारे छात्र-युवा संगठन ने कई बार लोगों को चेताया कि देवरस जहाँ भी जा रहे, वहां उनके जाने के बाद सांप्रदायिक दंगे भडक रहे. इसपे तीन बार हजारों की संख्या में लीफलेट भी बांटे गए. मगर, किसी दल या नेता ने इसपे ध्यान देना जरुरी नहीं समझा. बाद में, जब दंगे भडके, तब एक नेता ने हमारे छात्र-युवा संगठन की बड़ी तारीफ़ की. बस, वे भी उतना ही करके शांत बैठ गए. मगर, देवरस का दंगा अभियान जारी रहा.
दंगे के दौरान हमारे संगठन ने कई जगह जान पे खेल कर दंगा रोकने का काम किया. इसे उन मुहल्लों के पुराने लोग अब भी याद रखे हुए हैं.
यह शायद उस वक्त की बात है, जब अन्ना सेना में अपनी जान की बाजी लगा कर देश बचाने की सेवा में लगे हुए था और बाबा अपने इस वतर्मान के प्रारम्भ काल में थे.
उस समय तक छात्र संघर्ष समिति का नाम बदलकर छात्र-युवा संघर्ष वाहिनी रख दिया गया था. उस वाहिनी पे भी संघियों ने कब्जे की बड़ी कोशिश की, मगर, वो अंततः जेपीवादी समाजवादियों के पास ही रही. जिसने बाद में बोध गया में ज़मींदारी के खिलाफ बडी लड़ाई लड़ी और एक हद तक जीत भी हासिल की. उस वक्त ये संघी ज़मींदार के साथ ही खड़े पाए गए.
बहरहाल, दंगों के अलावा उस वक्त भी संघियों के शासन में आर्थिक भ्रष्टाचार हुए. बिहार में कर्पूरी ठाकुर जैसे ईमानदार नेता को हटाकर संघियों ने अपनी कठपुतली सरकार बनायी और मजे से अपनी साम्प्रदायिकता तथा भ्रष्टाचार चलाते रहे.
६. कैलाशपति मिश्र हों या अन्य संघी मंत्री-नेता कई पे भ्रष्टाचार के आरोप लगे. अभी तो ये भ्रष्टाचार मामले में कांग्रेसियों से होड ले रहे.
७. संघियों की इसी बदचलनी को ध्यान में रख कर अन्ना आन्दोलन ने इनसे एक दूरी बनाए रखी. जो इन्हें शुरू से ही खलती रही.
८. और, इसीलिए इनकी एक टुकड़ी यानि ग्रुप अन्ना आन्दोलन के खिलाफ लगा दी गयी. जो तथाकथित "मतभेद' के नाम पे ज़हर भर उगलती है.
१२. और, जब अन्ना-बाबा ने एक मंच पे फिर से आने का फैसला किया तो संघियों की नींद हराम हो गयी. इनका शेख चिल्ली का सपना टूटने लगा.
१३. अन्ना-बाबा की मित्रता को अटूट देख ये संघी भी उतने ही बौखलाए हुए, जितना कि सोनिया कांग्रेस. सो, ये भी अब अनर्गल प्रलाप करने लगे हैं.
१४. अरविन्द का मामला कुछ भी नहीं. उसे तिल का ताड़ बनाके पेश कर रही कांग्रेस दलाल मीडिया. और उसके सुर में सुर मिला रहे ये गंदे संघी.
इसपे मैंने परसों ही साफ़-साफ़ लिखा है: उसे जस का तस यहां पेश कर रहा:
१.दलाल मीडिया को एक और मौक़ा मिला अन्ना-बाबा के बीच "फूट" की "खबर" उड़ाने का, जब अरविन्द ने कुछ नेताओं के नाम भाषण में ले लिये.
२. आज बाबा ने अपनी ओर से किसी चोर का नाम नहीं लेने का फैसला लिया था. यह उनका फैसला था.जो अतिथियों पे थोपा नहीं जा सकता था.
३.बाबा ने किसीपे थोपा भी नहीं. अरविन्द द्वारा कुछ चोर-उचक्कों के नाम लेने के बाद उन्होंने हंसी के साथ अपना यह फैसला दुहराया.
४. बाबा ने कहा कि आज किसीका नाम नहीं लेना था, मगर जब अरविन्द जी ने ये काम कर ही दिया है तो फिर उसपे कोई विवाद नहीं करना.
५. फिर भी दलाल मीडिया को तो विवाद करना ही था. सो, वे अब तक अपना दलाल राग बजाये जा रहे.
६.अरविन्द का जाना तय था.उनकी तबीयत ठीक नहीं.उनका सर दर्द से फटा जारहा था.वे जल्दी बोलना चाहते थे. बोलने के बाद इजाजत ले चलेगए.
७. दलाल मीडिया ने इसे भी बड़ा मुद्दा बना दिया कि बाबा से नाराज हो वे चले गए. यानि वाकआउट किया. हद है दलाली की !!
८.अरविन्द ने नाम ले भी लिया तो कोई गुनाह नहीं किया. नाम लिये बिना आप किस भ्रष्टाचारी को जेल भेजोगे? किसका काला धन लाओगे?
९. रणनीतिक दृष्टि से कुछ वक्त के लिए नाम न भी लिया जाय, तो भी लालू, मुलायम, चिदु, सिब्बल, देशमुख आदि को जेल तो भेजना ही है.
१०. यह आन्दोलन का आरंभ नहीं. इसे एक साल से अधिक हो गए.और, इस बीच सबके चेहरे सामने आ चुके. ऐसे में नाम न लेने का कोई तुक नहीं.
११. अब तो नाम लेने से ही यह आन्दोलन और मजबूती से आगे बढ़ेगा. और, इससे भ्रष्टों पे दबाव बढ़ेगा.
अन्ना-बाबा हर तरह की रणनीति अपना रहे. अपनानी भी चाहिए. दुश्मनों के दुश्मन से दोस्ती की भी रणनीति अपनायी जानी चाहिए. इसमें कोई गुनाह नहीं. साथ ही ये ध्यान रखना जरुरी कि एक दुश्मन से निजात पाने के चक्कर में हम दूसरे दुश्मन की साज़िश के शिकार न हो जाएँ. एक महा भ्रष्ट को हटाने के बाद हम एक दूसरे भ्रष्ट के महा भ्रष्ट बनने का रास्ता न खोल दें.
इसीलिए सबसे पहले मजबूत जन लोकपाल की लड़ाई पे पूरा ध्यान केंद्रित किया जाना जरुरी. इससे भ्रष्टों को भ्रष्टाचार करने का मौका ही नहीं मिल पाएगा. और, किसीने किया तो उसे जेल में चक्की पीसने के लिए भी तैयार रहना होगा. (फिलहाल. समाप्त)
२. जेपी आन्दोलन में इन्हें किसी मजबूरी में नहीं लाये थे जयप्रकाश. बल्कि "कांग्रेस-विरोधी" हवा को बल देने के लिए लाया गया था.
३..इसे संघियों ने अपनी शक्ति मान ली. और, महंगाई तथा भ्रष्टाचार और तानाशाही के खिलाफ जेपी आन्दोलन पे कब्जा करना शुरू कर दिया.
४. जनतापार्टी बनने के बाद तो संघियों ने समझ लिया कि इनका ही शासन आ गया.सो, मनमानी चलाने लगे.सबसे पहले बिहार-यूपी आदि में जमके दंगे करवाए.
५. खुद सरसंघचालक बालासाहेब देवरस ही इन दंगों के लिए ज़मीन तैयार करते रहे.
उस समय हमारे छात्र-युवा संगठन ने कई बार लोगों को चेताया कि देवरस जहाँ भी जा रहे, वहां उनके जाने के बाद सांप्रदायिक दंगे भडक रहे. इसपे तीन बार हजारों की संख्या में लीफलेट भी बांटे गए. मगर, किसी दल या नेता ने इसपे ध्यान देना जरुरी नहीं समझा. बाद में, जब दंगे भडके, तब एक नेता ने हमारे छात्र-युवा संगठन की बड़ी तारीफ़ की. बस, वे भी उतना ही करके शांत बैठ गए. मगर, देवरस का दंगा अभियान जारी रहा.
दंगे के दौरान हमारे संगठन ने कई जगह जान पे खेल कर दंगा रोकने का काम किया. इसे उन मुहल्लों के पुराने लोग अब भी याद रखे हुए हैं.
यह शायद उस वक्त की बात है, जब अन्ना सेना में अपनी जान की बाजी लगा कर देश बचाने की सेवा में लगे हुए था और बाबा अपने इस वतर्मान के प्रारम्भ काल में थे.
उस समय तक छात्र संघर्ष समिति का नाम बदलकर छात्र-युवा संघर्ष वाहिनी रख दिया गया था. उस वाहिनी पे भी संघियों ने कब्जे की बड़ी कोशिश की, मगर, वो अंततः जेपीवादी समाजवादियों के पास ही रही. जिसने बाद में बोध गया में ज़मींदारी के खिलाफ बडी लड़ाई लड़ी और एक हद तक जीत भी हासिल की. उस वक्त ये संघी ज़मींदार के साथ ही खड़े पाए गए.
बहरहाल, दंगों के अलावा उस वक्त भी संघियों के शासन में आर्थिक भ्रष्टाचार हुए. बिहार में कर्पूरी ठाकुर जैसे ईमानदार नेता को हटाकर संघियों ने अपनी कठपुतली सरकार बनायी और मजे से अपनी साम्प्रदायिकता तथा भ्रष्टाचार चलाते रहे.
६. कैलाशपति मिश्र हों या अन्य संघी मंत्री-नेता कई पे भ्रष्टाचार के आरोप लगे. अभी तो ये भ्रष्टाचार मामले में कांग्रेसियों से होड ले रहे.
७. संघियों की इसी बदचलनी को ध्यान में रख कर अन्ना आन्दोलन ने इनसे एक दूरी बनाए रखी. जो इन्हें शुरू से ही खलती रही.
८. और, इसीलिए इनकी एक टुकड़ी यानि ग्रुप अन्ना आन्दोलन के खिलाफ लगा दी गयी. जो तथाकथित "मतभेद' के नाम पे ज़हर भर उगलती है.
९. अन्नाआन्दोलन के अलावा संघियों ने बाबाआन्दोलन पे भी कब्जा करने की
कोशिश की. बाबा के नाम पे इन संघियों ने खूब सांप्रदायिक नफरत फैलाई.
१०. बाबा ने सर्व धर्म समभाव को अपना सिद्धांत घोषित कर दिया तो इसी संघ की
एक टुकड़ी अन्ना आन्दोलन का गुण गाते हुए बाबा पे हमले करने लगी.
११. उस वक्त संघियों ने सोचा था कि बाबा पे हमले करने से अन्ना अन्दोल्कारी
इनकी तारीफ़ करेंगे, मगर इसका उल्टा हुआ. इनकी खिंचाई हुई.१२. और, जब अन्ना-बाबा ने एक मंच पे फिर से आने का फैसला किया तो संघियों की नींद हराम हो गयी. इनका शेख चिल्ली का सपना टूटने लगा.
१३. अन्ना-बाबा की मित्रता को अटूट देख ये संघी भी उतने ही बौखलाए हुए, जितना कि सोनिया कांग्रेस. सो, ये भी अब अनर्गल प्रलाप करने लगे हैं.
१४. अरविन्द का मामला कुछ भी नहीं. उसे तिल का ताड़ बनाके पेश कर रही कांग्रेस दलाल मीडिया. और उसके सुर में सुर मिला रहे ये गंदे संघी.
इसपे मैंने परसों ही साफ़-साफ़ लिखा है: उसे जस का तस यहां पेश कर रहा:
१.दलाल मीडिया को एक और मौक़ा मिला अन्ना-बाबा के बीच "फूट" की "खबर" उड़ाने का, जब अरविन्द ने कुछ नेताओं के नाम भाषण में ले लिये.
२. आज बाबा ने अपनी ओर से किसी चोर का नाम नहीं लेने का फैसला लिया था. यह उनका फैसला था.जो अतिथियों पे थोपा नहीं जा सकता था.
३.बाबा ने किसीपे थोपा भी नहीं. अरविन्द द्वारा कुछ चोर-उचक्कों के नाम लेने के बाद उन्होंने हंसी के साथ अपना यह फैसला दुहराया.
४. बाबा ने कहा कि आज किसीका नाम नहीं लेना था, मगर जब अरविन्द जी ने ये काम कर ही दिया है तो फिर उसपे कोई विवाद नहीं करना.
५. फिर भी दलाल मीडिया को तो विवाद करना ही था. सो, वे अब तक अपना दलाल राग बजाये जा रहे.
६.अरविन्द का जाना तय था.उनकी तबीयत ठीक नहीं.उनका सर दर्द से फटा जारहा था.वे जल्दी बोलना चाहते थे. बोलने के बाद इजाजत ले चलेगए.
७. दलाल मीडिया ने इसे भी बड़ा मुद्दा बना दिया कि बाबा से नाराज हो वे चले गए. यानि वाकआउट किया. हद है दलाली की !!
८.अरविन्द ने नाम ले भी लिया तो कोई गुनाह नहीं किया. नाम लिये बिना आप किस भ्रष्टाचारी को जेल भेजोगे? किसका काला धन लाओगे?
९. रणनीतिक दृष्टि से कुछ वक्त के लिए नाम न भी लिया जाय, तो भी लालू, मुलायम, चिदु, सिब्बल, देशमुख आदि को जेल तो भेजना ही है.
१०. यह आन्दोलन का आरंभ नहीं. इसे एक साल से अधिक हो गए.और, इस बीच सबके चेहरे सामने आ चुके. ऐसे में नाम न लेने का कोई तुक नहीं.
११. अब तो नाम लेने से ही यह आन्दोलन और मजबूती से आगे बढ़ेगा. और, इससे भ्रष्टों पे दबाव बढ़ेगा.
असल में, बाबा रामदेव जी फिर से अपने आन्दोलन की शुरुआत कर रहे हैं. वे अन्ना आन्दोलन की तर्ज पे सभी नेताओं से मिलने जा रहे....इसीलिए वे चोरों के नाम लेने से बच रहे. ..मगर, अब वो वक्त काफी पीछे
छूट गया है. अब तो जनता को जगाकर ही काला धन आन्दोलन सफल हो सकता.
अरविन्द केजरीवाल द्वारा चोरों के नाम लेने के सिलसिले में की गयी उक्त टिप्पणियों से स्थिति लगभग स्पष्ट हो जाती है, खासकर उन लोगों के लिए जो कांग्रेस सरकार के महा भ्रष्टाचार से बुरी तरह पीड़ित हैं. लेकिन, फिर भी विपक्षी होने का दावा करने वाले कुछ संघी-भाजपाई कांग्रेसी दलाल मीडिया के ही सुर में सुर मिलाते हुए अन्ना आन्दोलन के खिलाफ अपनी भडास निकाल रहे.
अन्ना-बाबा हर तरह की रणनीति अपना रहे. अपनानी भी चाहिए. दुश्मनों के दुश्मन से दोस्ती की भी रणनीति अपनायी जानी चाहिए. इसमें कोई गुनाह नहीं. साथ ही ये ध्यान रखना जरुरी कि एक दुश्मन से निजात पाने के चक्कर में हम दूसरे दुश्मन की साज़िश के शिकार न हो जाएँ. एक महा भ्रष्ट को हटाने के बाद हम एक दूसरे भ्रष्ट के महा भ्रष्ट बनने का रास्ता न खोल दें.
very accurate analysis, team anna has got to be guarded, truly an eye opener article
जवाब देंहटाएंfrom:- Praful Vora...E Mail.... praful.vora@gmail.com
जवाब देंहटाएंAnna Party Yes or No????
All this talk of sitting outside and agitating has been done for the past fifteen years of my life along with other Activists. Our Constitution requires that 'systemic changes' be passed by Parliament and Assemblies. JNM set up process over the last six years and put in token citizen candidates.
Current IAC agitations have hopefully awakened citizens and made more aware of need for participation. If selfless citizens offer five years of their lives only once for nation building, right kind of elected persons can bring in the changes in an evolutionary fashion.
This does NOT mean others should not try other constitutional means and methods, nor does this mean that TAINTED PERSONS should not be exposed and challenged.
The whole purpose of this almost two year agitation was to wake up the nation. Let all paths be used, DO NOT belittle this or that path.