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रविवार, 2 सितंबर 2012

ये भारत है, इसे इंडिया न समझें!

अरविन्द की एनजीओ टीम द्वारा करवाए गए एक सर्वेक्षण की समीक्षा का यह दूसरा भाग. 

१. अन्य अनेक दलों की ही तरह अन्ना आन्दोलन में भी अंग्रेजीदां और शहरी मध्य वर्ग का कब्जा है. इसीलिए इन्हें "भारत" दिखता नहीं. इसीलिए कुछ शहरों के चंद हज़ार लोगों के सर्वेक्षण को ये पूरे भारत का मान कर इस तरह पेश कर रहे मानो पूरा जनमत संग्रह ही करवा लिया हो.

२. इस देश में इस अंग्रेजीदां मध्य वर्ग ने अनेक अच्छे दलों-आंदोलनों को नष्ट करने में बड़ी भूमिका अदा की है.  कम्युनिस्ट आन्दोलन  को भी ऐसे ही लोगों ने बड़ा नुकसान पहुंचाया है.

३. बहरहाल, खुद यह सर्वेक्षण कहता है कि सिर्फ २८ शहरों के मात्र ८ हज़ार आठ सौ तैंतीस लोगों से बातचीत
करके कुछ नतीजे निकाले गए हैं.

४. इस सर्वेक्षण के नतीजों को इसीलिए सिरे से खारिज किया जा रहा, क्योंकि यह भारत देश का प्रतिनिधित्व नहीं करता. भारत का कोई ७० फीसदी आबादी गांवों-कस्बों में. जबकि यह सर्वेक्षण मात्र २८ शहरों के कुछ हज़ार लोगों का.

५. इसके नतीजे भी परस्पर  विरोधी और अधूरा. एक तरफ नतीजे में यह कहा जाता कि ७७ फीसदी जनता तथाकथित "अन्ना पार्टी" को वोट देने को तैयार. दूसरी ओर भाजपा को २७ फीसदी और कांग्रेस को १८ फीसदी वोट मिलने की भी भविष्यवाणी की जा रही. तो कुल मिला कर कितने फीसदी हुए??

६. उक्त हास्यास्पद आंकड़ों में बाकी दल सिरे से गायब हैं? क्यों? इन २८ शहरों में क्या और किसी दल को कोई वोट नहीं मिलना?? ये भी एक बड़ा मजाक किया है इस सर्वेक्षण में.

७. इस सर्वे में "अन्ना पार्टी" का नाम लिया जा रहा. जबकि अन्ना के सुझावों को ताक पे रख कर कोई अधकचरा दल बनाने की कोशिश में जुटी है अरविंद  की एनजीओ टीम. और, अन्ना ने अपने हाल के ब्लॉग में कोई दल बनाने का जिक्र तक नहीं किया है... वे बस ईमानदार-स्वच्छ छवि वाले उम्मीदवारों को चुन कर संसद भेजने की बात कह रहे. ऐसे में "अन्ना पार्टी" का नाम लेना सरासर गलत. और, जब फिलहाल अन्ना की कोई पार्टी होगी ही नहीं, तो फिर इस सर्वेक्षण का कोई मतलब ही नहीं रहता. (वैसे भी यह सर्वेक्षण बिल्कुल फालतू).

८. अरविन्द की एनजीओ टीम ने बड़ी चतुराई के साथ यह फास्ट फ़ूड मार्का सर्वेक्षण इसलिए करवाया, ताकि अन्ना के दिये सुझावों का एक 'जवाब" मिल जाय. अन्ना का एक सुझाव ये भी कि मतदाताओं के कोई ८० फीसदी की सहमति लेकर ही कोई विकल्प बनाया जाय. उनका स्पष्ट कहना है कि गांवों-मुहल्लों में आन्दोलन को ले जाकर आम मतदाताओं से सहमति ली जाय. लेकिन, ये फास्ट फ़ूड कल्चर वाले आन्दोलनकारियों को बड़ी जल्दी लगी हुई है. इसीलिए यह बोगस सर्वेक्षण करवा कर अपने आलोचकों का मुँह बंद करवाने की सतही कोशिश या तिकडम.

९. इस भावी अधकचरी पार्टी ने अब तक महज जनलोकपाल आन्दोलन ही किया है. विभिन्न राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पे इसकी राय के बारे में कोई जानता ही नहीं. फिर कैसे लोगों ने बता दिया कि यह पार्टी नक्सलवाद, आतंकवाद आदि जैसे सभी मुद्दों से निपट सकती है?? ये भी लोगों की आंखों में धूल झोंकने का एक घटिया उपाय.

१०. और, भी कई बातें हैं, जिनपे सवाल खड़े किये जा सकते हैं. लेकिन. फिलहाल इतना ही. इस महा-घटिया सर्वेक्षण पे इतनी लंबी समीक्षा करना भी बेतुका लग रहा. यह उस लायक है ही नहीं. मगर, नहीं करने से अनेक आम आन्दोलनकारी भ्रमित हो सकते हैं, इसीलिए इतना करना जरुरी लगा..

(ऐसा लगता है कि इस सर्वेक्षण को अंतिम रूप दिया गया है अरविन्द एनजीओ के दफ्तर में. जहाँ मीडिया दलाल योगेन्द्र यादव भी मौजूद रहे होंगे. दलाल मीडिया की जबसे अरविन्द टीम में घुसपैठ हुई है, तबसे उसमें भटकाव साफ़ देखा जा रहा.)















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