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सोमवार, 22 अप्रैल 2013

दामिनी आंदोलन है क्या? क्या कोई दलीय प्रतिनिधि बता सकते?


कल मुख्य  रूप से मैंने तीन मुद्दों को उठाया. सुबह के वक्त महिला उत्पीडन विरोधी मुहल्ला समिति की भूमिका. जिसे अनेक जगह प्रसारित भी किया गया. अनेक लोगों ने फेसबुक और ट्विटर में इसके साथ सहमती भी जाहिर की और अपने विचार भी रखे. आशा है कि इस मुद्दे पे यहां जो अलग से ब्लॉग है, वहां भी सभी साथी अपने सुझाव-विचार ज़रूर ही रखते जाएंगे. ये सुझाव आगे काफी काम के साबित होने वाले. कल ही मैंने पुलिस व्यवस्था में बुनियादी सुझाव, जनतांत्रिक बदलाव की चर्चा शुरू करने का प्रयास किया, मगर दिल्ली में बलात्कार विरोधी आंदोलन पे पुलिस कार्रवाई हो जाने से अफरा-तफरी में अनेक साथी इस चर्चा में भाग नहीं ले पाए. वे सभी साथी इस ब्लॉग के जरिए चर्चा करें. अपने सुझाव दें. कल ही रात में मैंने दामिनी आंदोलन के चरित्र से जुड़े विन्दुओं को उठाने की कोशिश की. उसपे भी खास चर्चा संभव नहीं हो पायी. कुछ साथी ज़रूर चर्चा में शामिल हुए. लेकिन, इसपे भी व्यापक-विस्तृत चर्चा की सख्त ज़रूरत है... सो, इस ब्लॉग में सभी अपने विचार रखे. चर्चा करें, तो अच्छा हो. ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- दामिनी के वक्त यह आंदोलन शुद्ध रूप से आम जनता का अपना आन्दोलन था, जिसमें महिलाओं का नेतृत्व स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आया. इस बार? इस बार दामिनी आंदोलन लगभग पूरी तरह राजनीतिक रूप ले चुका. ये अच्छा हुआ या बुरा या बीच-बीच का, इसपे बाद में अनेक विश्लेषण आते रहेंगे. मगर.. ..मगर, इस बार महिलाओं के हाथ से लगभग नेतृत्व निकल चुका दिख रहा. ये और बात कि कुछ महिला संगठन भी मैदान में. उनमें भी कुछ दलीय. दामिनी आंदोलन है क्या? क्या कोई दलीय प्रतिनिधि बता सकते?
जिन्हें दामिनी आंदोलन के चरित्र का पता नहीं; वे संसद से लेकर सड़कों तक जितना शोर मचा लें, दामिनी नहीं बचाई जा सकती! दामिनी आंदोलन राजनीतिक से कहीं अधिक सामाजिक मुद्दा.इस मुद्दे पे चुनावी राजनीति करना दामिनियों के साथ खिलवाड़ ही होगा.अधकचरे नेता जान लें. विभिन्न दलों ने विभिन्न तबकों के जनसंगठनों को अपना "गुलाम" बना रखा. उनके जरिए अपनी दलीय राजनीति चलाई.इससे उन तबकों के हितों का नुकसान हुआ. विभिन्न तबकों के हित एक जैसे होने के साथ-साथ अलग-अलग भी. ऐसे में उन तबकों के संगठनों को पूरी स्वतंत्रता या व्यापक स्वायतता देनी ज़रुरी. यही बात दामिनी आन्दोलन पे भी लागू. बल्कि कहीं ज्यादा लागू होती. दामिनी आंदोलन का नेतृत्व आम महिलाओं के हाथ हो. न कि दलीय नेताओं के हाथ. दामिनियों का दर्द दामिनियाँ ही बहुत बेहतर जान सकतीं. जिसे दलों के मर्द नेता या मरदाना समाज के दबाव में जी रहीं महिला नेता नहीं समझ सकतीं. इस ट्विट श्रृंखला में सबसे पहले जवाब देने वाले महाशय ने ये प्रतिक्रिया दी : (हालांकि वे अंतिम बात कर रहे थे. उसके बाद उन्होंने शायद कुछ वक्त के लिए ट्विटर छोड़ दिया ..... 

I am trying to quit twitter and glad that mine last few tweets may be with you :) ( Till twitter drags me back).)
what do you mean ? It is being lead by politically oriented people ? So what !!
मेरे इससे पहले के आज के और इस ट्विट के बाद के सारे ट्वीट्स देखें. फिर कोई सवाल करें. बल्कि कुछ सवालों के जवाब भी दें.
I read them and sort of agree
(इसके बाद लंबी बात चली. वे मोटे तौर पे इन सारे मुद्दों से सहमत ही दिखे. इस लिंक में हमारी बातचीत देखी जा सकती. https://twitter.com/Hello_AAP) https://twitter.com/Hello_AAP/status/326062925112541186 बहरहाल, सभी साथियों के लिए यह चर्चा फिर से जारी कर रहा. इस सिलसिले के तीनों ब्लॉग देखें. सभी एक-दूसरे से जुड़े हुए.


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