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बुधवार, 20 अप्रैल 2011

मीडिया का शीर्षासन - भाग-३

शीशे के घर की बरखा दत्त

विवादों से घिरी एनडीटीवी पत्रकार बरखा दत्त को नैतिकता के सवाल पूछते देख देख बड़ी हैरानी हुई. वे स्वामी अग्निवेश और जस्टिस संतोष हेगड़े से एक परिचर्चा के दौरान नैतिकता से ओतप्रोत सवाल दागे जा रही थीं, जबकि इन दोनों की पूरी पृष्ठभूमि पूरी तरह स्वच्छ है, कोई दाग नहीं. दोनों ही अपने-अपने क्षेत्र में भ्रष्टाचार के विरुद्ध लगातार संघर्ष करते रहे हैं और अभी भी कर रहे हैं. जबकि खुद बरखा दत्त पर अभी कुछ महीने पहले ही पत्रकारिता पेशे का दुरूपयोग करने और सत्ता की दलाली के संगीन आरोप लग चुके हैं.

उन पर आरोप लगा है कि उन्होंने कुख्यात नीरा राडिया के साथ मिलकर सत्ता के दलाल की भूमिका अदा की है. यह वही नीरा राडिया है, जो २ जी घोटाले में भी फंसी हुई हैं. इस मामले को दबाने की तथाकथित मुख्यधारा की मीडिया ने पूरी कोशिश की थी. लेकिन भला हो सामाजिक यानि इंटरनेट मीडिया का, जिसने इसे जीवित रखा और आखिरकार "बड़े अखबारों" और विभिन्न समाचार चैनलों को भी इस खबर को प्रमुखता से छापनी पड़ी. और दुनिया से मुंह छिपाने वाली बरखा को भी सामने आकार अपनी सफाई में बहुत कुछ कहना पड़ा. यह और बात है कि कुछ लोगों को छोड़ आम लोगों सहित उनके पत्रकार बंधुओं ने भी उनका यकीन नहीं किया. अपने ही चैनल में वे बड़ी उद्दंडता के साथ अन्य निषपक्ष पत्रकारों का मुंह बंद करती नज़र आयीं.

इतने बड़े कांड के बाद भी उन्होंने अपने पदों से इस्तीफा देना ठीक नहीं समझा. जबकि उसी तरह के आरोपों के कारण कुछ अन्य पत्रकार अपने स्थान से हट गए या हटा दिये गए. अब भी वे बड़ी ढिठाई के साथ उसी काम को बदस्तूर चलाये जा रही हैं और उनका चैनल भी कांग्रेस की तरफदारी में लगा हुआ है.

अब वही बरखा दत्त एक सरासर झूठे और बदमाशी की नीयत से लगाए जाने वाले आरोपों के मद्देनज़र शांति भूषण तथा प्रशांत भूषण से जन-लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार करने वाली समिति से इस्तीफा देने का दबाव बनाती दिख रही हैं. इससे भी यही साफ़ होता है कि वे और उनका चैनल अब भी भ्रष्ट सत्ता की दलाली में व्यस्त हैं.

बरखा दत्त और अमर सिंह

स्वामी अग्निवेश ने उनसे जब किसी पत्रकार की नैतिकता के बारे में पूछ लिया तो वे तिलमिला उठीं. उन्होंने उसी ढिठाई और उद्दंडता के साथ उसका जवाब दिया जो कि स्पष्ट नहीं था और उससे उनकी स्थिति साफ़ नहीं होती. बरखा दत्त को अब भी इस्तीफा देकर अपने को पाक-साफ़ साबित होने तक घर बैठकर आत्म-विश्लेषण करना चाहिए. लेकिन अमर सिंह और बरखा दत्त जैसे लोग ऐसा करने वालों में से नहीं हैं. वे शीशे के घरों में रहते हुए भी दूसरों पर पत्थर मारने को अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते हैं.

अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को बदनाम और कमजोर करने के उद्देश्य से ही समिति की पहली बैठक के एक दिन पहले फर्जी सीडी कांड सामने आया. इससे ही करोड़ों आम लोगों ने इसके पीछे के कुचक्र को भांप लिया, इसीलिए तो जब बरखा का कार्यक्रम चल रहा था तब भी उनके चैनल को ऐसे सन्देश प्रकाशित करने पड़े जो अमर सिंह, दिग्गी राजा और कांग्रेस सरकार के खिलाफ थे. इतना ही नहीं, नेट खोलकर देख लिया जाय, एक्के-दुक्के भ्रमित लोग ही नागरिक सदस्यों के खिलाफ बोल-लिख रहे है. जबकि लाखों की तादाद में ऐसी टिप्पणी देखने को मिल रही है जो इसे कांग्रेस सरकार की साजिश मानती है. बरखा और उनके चैनल को भ्रष्ट कांग्रेस सरकार की दलाल मानने वालों की संख्या भी इससे कम नहीं.

जारी.....

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