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शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

भूषणों को इस्तीफा देने की ज़रूरत नहीं

चन्दन जी,

मनमोहन सरकार ने एक विधेयक तैयार किया है. उसमें इतने छेद रखे गए हैं कि ए. राजा और कलमाड़ी जैसे भ्रष्ट भी बच निकलेंगे. इसीलिए अन्ना हजारे के नेतृत्व में किरण बेदी सहित समिति के पाँचों सदस्यों ने मिलकर एक जन-लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार किया है. जिसे आम जानता के लिए जारी भी कर दिया गया है. आप अपने अन्य सही किस्म के मित्रों के लिंक पर जाएं या इंडिया अगेंस्ट करप्शन के लिंक पर जाएंगे तो इन सारी बातों का खुलासा हो जाएगा. आप जैसे जिज्ञासु मेरे ब्लॉग kiranshankarpatnaik.blogspot.com से भी कुछ जानकारी पा सकते हैं.

जिन लोगों ने जन-लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार किया है, वे लोग ही समिति के नागरिक सदस्य हैं. जब तक ये लोग जन-लोकपाल बिल का मसौदा तैयार कर रहे थे, तब तक किसी भी अमर या दिग्गी या नवाब मालिक या रघुवंश प्रसाद या रीता या सिब्बल जैसों को कोई तकलीफ नहीं थी. क्योंकि ऐसे मसौदे बना लेने से भ्रष्टाचारियों पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. लेकिन जब इन भ्रष्टों को लगा कि करोड़ों लोगों के समर्थन से यह मसौदा विधेयक और फिर क़ानून बन जाने वाला है तब इन्होने साजिश शुरू की. इसीलिए ये सारे चरित्र हनन अभियान चलाये जा रहे हैं. यहां किसी दल को समर्थन करने या विरोध करने का सवाल नहीं है. लेकिन चूंकि कांग्रेस सत्ता में है और उसके शासन में अंधाधुंध भ्रष्टाचार चल रहा है, इसीलिए उसका ही नाम लिया जाता है. भ्रष्टाचार से कोई दल बच नहीं पाया है. लेकिन इस वक्त भ्रष्टाचारियों की अगुआई कांग्रेस कर रही है. इसीलिए कांग्रेस का नाम आना लाजिमी है.

तमाम भ्रष्टों में एका कायम हो गया है. देखना कुछ दिनों बाद भाजपा का भी कोई नेता अन्ना आंदोलन के विरुद्ध अनाप-शनाप बकता हुआ नज़र आ जाएगा. भ्रष्टों की इस शक्तिशाली जमात को देश के बड़े उद्योगपतियों का भी सर्रक्षण प्राप्त है. क्योंकि इन दिनों राजा सहित कई अरबपति तिहाड की हवा खा रहे हैं. इससे तमाम भ्रष्टों की नींद हराम हो गयी है. अगर कोई कठोर क़ानून बन गया तो इन सबकी खैर नहीं. कई तिहाड बनाने पड़ेंगे. इसीलिए अन्ना आंदोलन को तोड़ने , बदनाम करने की गहरी साजिश रची गयी है और इसमें मीडिया के बड़े-बड़े पत्रकार भी शामिल हो गए हैं.

मीडिया पर करोड़ों रुपए पानी की तरह खर्चे जा रहे हैं. झूठ को असली बनाने के लिए अर्णब गोस्वामी, बरखा दत्त, विनोद शर्मा, सरदेसाई, आदि अनेकानेक बड़े चेहरों को लगा दिया गया है. तथाकथित बड़े अखबार भी पूरी तरह से बिके हुए हैं. क्योंकि इनके मालिक भी बड़े पूंजीपति हैं. और अरबों रुपए कमाने के लिए कितने भ्रष्टाचार करने पड़ते हैं, इसकी जानकारी सबको है. टाटा, अंबानी को भी जेल जाना पड़ सकता है, अगर सही माने में कठोर क़ानून बन गया और उसे लागू किया गया तो. इससे देश के भ्रष्टों को कुछ तो करना है. सो यह स्वाभाविक है कि वे साजिश करके आंदोलन को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन जब तक जनता सावधान है. ऐसी कोई साजिश सफल नहीं होगी.

जहां तक भूषणों का सवाल है. जांच बिठा दी जाय. लेकिन चूंकि उन पर लगने वाले आरोप ऐसे समय में आये हैं जब समिति की पहली बैठक शुरू होने वाली थी, इसीलिए इसे साज़िश ही कहा जाएगा. और भूषणों को किसी भी हालत में समिति से बाहर आने की जरूरत नहीं. जन-लोकपाल विधेयक बन जाने के बाद वे चाहे जो करें. जांच चले. यही बात अन्य सदस्यों (नागरिक) पर भी लागू होती है. विधेयक बनाना पहला लक्ष्य है. इसे किसी भी हाल में प्राप्त करना ही होगा.

कुछ लोगों का यह कहना है कि मंत्रियों पर अगर आरोप लगते तो क्या हम उनसे इस्तीफे की मांग नहीं करते. जरुर करते. और शक्तिशाली पद पर बैठे व्यक्ति से तुरंत इस्तीफा देने को कहते. क्योंकि वह जांच पर प्रभाव डाल सकता है. जैसे कि अभी भी अनेक मामलों को दबाने की कोशिश की जा रही है. लेकिन भूषण कोई मंत्री या बड़े नौकरशाह नहीं हैं. उनके खिलाफ जांच को वे प्रभावित नहीं कर सकते. उलटे सरकार ही उनकी जांच को प्रभावित कर सकती है. जैसे कि एक झूठी सीडी को सरकारी एजेंसी ने सच बता दिया. यह सरकार के दबाव पर ही तो किया गया है. ऐसे में भूषणों के खिलाफ कोई न्यायिक जांच शुरू करवाना ही पर्याप्त होगा. उन्हें समिति से इस्तीफा देने की जरुरत नहीं.

फिलहाल इतना ही.

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