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बुधवार, 13 अप्रैल 2011

राजा-कलमाडी के भाई-बंधुओं का एका

भ्रष्टाचार विरोधी देश व्यापी आंदोलन के खिलाफ ए.राजा और कलमाडी के भाई-बंधुओं ने एकजुट होकर इस आंदोलन में फूट डालने की साजिश शुरू कर दी है.
इसी सिलसिले में सबसे पहले भाई-भतीजावाद का आरोप लगाया गया. जबकि ऐसी कोई बात नहीं है. नागरिकों की ओर से पांच सदस्यों में दो व्यक्ति रिश्ते में पिता-पुत्र हैं. लेकिन इन दोनों का इतिहास जनता के पक्ष में लड़ने और जनता के पक्ष में ही क़ानून का इस्तेमाल करने की है. दोनों ही क़ानून के बड़े पंडित हैं और इन दोनों से ही यह कांग्रेसी सरकार भयभीत रहती है. यह बात सभी जानते हैं, इसीलिए इस पर विस्तार से लिखने की जरुरत नहीं.
इस समिति में नागरिकों की ओर से एक ऐसे व्यक्ति भी हैं जिन्होंने भ्रष्टाचार मुद्दे पर कर्नाटक की भाजपा सरकार की नाक में दम कर रखा था और अब भी ऐसा ही कर रहे हैं. अन्ना हजारे ने उन्हें भी इस समिति में शामिल किया है. ऐसे में कांग्रेसियों द्वारा उनके खिलाफ चलाया जा रहा यह दुष्प्रचार कि अन्ना हजारे भाजपा या आरएसएस के आदमी हैं, सरासर दुर्भावना से प्रेरित है. इससे इस कांग्रेसी सरकार की मंशा सामने आ जाती है.

अन्ना हजारे ने इससे पहले महाराष्ट्र की भाजपा-शिवसेना सरकार के खिलाफ भी बड़ा आंदोलन चलाया था, उस कारण भी उस सरकार को सत्ता से बाहर होना पड़ा. इसीलिए हजारे को भाजपा की कठपुतली कहने वाले जरुर ही भ्रष्टाचारियों के दलाल हैं या खुद ही भ्रष्टाचारी हैं. यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि शिवसेना को अन्ना हजारे का यह आंदोलन उतना पसंद नहीं है. इसीलिए उसके कई नेताओं ने इस आंदोलन से कोई फायदा नहीं होने की बात कही है. ऐसी बात कांग्रेसी सिब्बल भी कह रहे हैं. जन लोकपाल क़ानून से कांग्रसियों को जितनी फ़िक्र है, उतनी ही शिव सेना नेताओं को भी है. एन सी पी और द्रमुक नेताओं को तो है ही, क्योंकि कांग्रसियों के साठ मिलकर इन दोनों संप्रग दलों ने भी देश को जमकर लूटा है और अभी भी लूट रहे हैं.

बहरहाल, अन्ना ने नितीश कुमार के साथ नरेन्द्र मोदी के ग्रामीण विकास की क्या तारीफ़ कर दी, फूट परस्तों को एक और "सुनहरा मौक़ा" हाथ लग गया.

इसमें कोई शक नहीं कि नितीश कुमार ने बिहार की गाडी को पत्री पर लाने का काम किया है. अभी मंजिल बहुत दूर है, लेकिन उलटी दिशा में जा रही गाडी को सही दिशा में मोड देना भी एक बड़ा काम है, इसके लिए उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की ही जानी चाहिए. उन्होंने रिश्वत के दलदल में डूबे बिहार को थोड़ा बाहर निकालने का भी काम किया है. हालांकि यह काम एक हद तक ही हुआ है, अभी और भी अनेक काम होने हैं.
जहाँ तक मोदी की बात है तो गुजरात दंगों की जितनी आलोचना की जाय कम होगी. इस लेखक सहित अनेकानेक लोगों ने उस दंगे की कटु से कटु आलोचना की है. और अब भी कर रहे हैं. लेकिन गुजरात में हो रहे विकास की अनदेखी भी नहीं की जा सकती. करनी भी नहीं चाहिए. जिस वक्त केंद्र की मनमोहन-सोनिया सरकार सहित विभिन्न राज्य सरकारें जनता के खजाने को लूटने में लगी हुई हैं और विकास के नाम पर लोगों को "भीख" में चावल दिया जा रहा है, मतदाताओं को हजार-हजार रुपए देकर उनके वोट खरीदने की कोशिश हो रही है, तब गुजरात में ज़रा स्वच्छ प्रशासन देने के प्रयास किये जा रहे हैं. राज्य के खजाने से ग्रामीण विकास, नागरिक सुविधाएं दी जा रही हैं, तो उसकी तारीफ़ होनी ही चाहिए. इसमें कहीं से कोई गलत बात नहीं है.

जहां तक साम्प्रदायिकता की बात है तो अन्ना हजारे ने एक दिन पहले एक बार फिर कहा है कि वे साम्प्रदायिकता के सख्त विरोधी हैं. और उन्होंने गुजरात दंगों की आलोचना भी की थी. और अभी भी करते हैं. साथ ही उन्होंने आम लोगों से अपील की है कि भ्रष्टाचारियों के बहकावे में न आयें और आंदोलन को मजबूत बनाने के काम में जुटे रहें.

मल्लिका साराभाई और मेधा पाटकर ने भी मोदी के संदर्भ में अन्ना की आलोचना की है. तो अब ऐसे लोगों को अन्ना की सफाई सुनकर शांत हो जाना चाहिए और इस आंदोलन को शक्तिशाली बनाने के काम को आगे बढ़ाना चाहिए. ऐसे अग्रणी लोगों को बचकाने तरीके से अपना क्षोभ इस तरह प्रकट करके आंदोलन को कमजोर बनाने का काम नहीं करना चाहिए. आंदोलन में फूट पडी या यह आंदोलन कमजोर पड़ा तो ऐसे लोगों को इतिहास माफ नहीं करेगा.

मेधा पाटकर को इस बात का भी दुःख है कि वे जिस मोदी सरकार के खिलाफ नर्मदा आंदोलन चला रहीं हैं, अन्ना ने उसी मोदी की तारीफ़ करके बहुत बड़ा पाप कर दिया है. अन्ना के संदर्भ को उन्होंने या तो समझा ही नहीं या समझकर भी वे नासमझ बन रही हैं. यह बात ठीक नहीं है. इस वक्त हजारे का मकसद जन लोकपाल क़ानून बनाना है. वे इसी सिलसिले में सारे काम कर रहे हैं. साथ ही उन्होंने चलते-चलाते देश के सर्वांगीण विकास की भी चर्चा कर दी. पूछे गए एक सवाल पर उन्होंने नितीश तथा मोदी के ग्रामीण विकास को एक आदर्श के रूप में पेश कर दिया. इसमें क्या बुरा किया. बात बस ग्रामीण विकास तक की ही है. और कुछ नहीं. इसे जबरन राजनीतिक रूप देने वाले खुद ही कोई साजिश कर रहे हैं या भ्रमित हैं या किसी हीनता के शिकार हैं.

गुजरात में हो रहा विकास निश्चित तौर पर पूंजीवादी विकास ही है. इसका बड़ा फायदा बड़े पूंजीपतियों को ही मिल रहा है. मोदी एक पूंजीवादी नेता ही हैं. और अन्ना हजारे भी कोई कम्युनिस्ट नहीं हैं. वे इसी पूंजीवादी व्यवस्था के तहत कुछ ऐसे जनतांत्रिक सुधर के लिए संघर्ष कर रहे है ताकि हमारा यह देश चोर-लुटेरों-बदमाशों का पूरा स्वर्ग न बन जाय. (वैसे मनमोहन ने इन चोरों-लुटेरों के लिए इसे जन्नत बनाने के सारे उपाय कर रखे हैं. ) अन्ना इतना ही चाह रहे है कि आम जनता भूखी न रहे, आत्महत्या न करे. और इसके लिए सबसे पहले नासूर बन चुके भ्रष्टाचार को कम करना या समाप्त करना अनिवार्य रूप से जरुरी है. मोदी के शासन में भ्रष्टाचार पर एक बड़े हद तक लगाम लगा रखी गयी है. पूंजीवादी विकास के लिए भी भ्रष्टाचार पर रोक लगाना जरुरी होता है. इसीलिए तो कई पूंजीपतियों ने भ्रष्टाचार पर गंभीर चिंता जाहिर की है, (यह और बात है कि एक के बजाय सौ या हज़ार का फायदा लेना भी भ्रष्टाचार ही है.)

फूट डालने वाली शक्तियां पूरे जोर-शोर से सक्रिय हो गई हैं. जागरूक व ईमानदार लोगों को सावधान रहने और ऎसी किसी भी साजिश को नाकाम करने की जरुरत है.

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